जो कह कर भी
कही ना जा सकीं,
उन बातों की छाप ही
कहलाती है कल्पना ।
कागज़ ,कैनवस या
मन का कोना,
कहीं भी
लिख डालो ,
या रंग दो . .
जो उस वक़्त सही लगता हो,
जब ह्रदय में उठा हो ज्वार
या उमड़ी हो वेदना ।
कह ना पाओ
तो कोलाज बनाओ
अनुभूतियों का ।
या सजाओ
रंगोली या अल्पना
उस रास्ते पर,
जहां से
थके-हारे मायूस लोग
गुज़रते हों ।
यह मौन अभिवादन,
शायद उन्हें
ऐसे किसी की
याद दिला दे,
जिसने हमेशा
उनकी भावनाओं का
किया था आदर ।
या काढ़ो चादर पर
रुपहले बेल,बूटे और फूल
जो उन दिनों की
स्मृति के पट खोल दे,
जब बिना बुलाये . .
माँ की गोदी में
सिर रखते ही
झट से आ जाती थी . .
सुन्दर सपनों वाली नींद ।
सोच कर नहीं,
महसूस कर
जब लिखी जाती है नज़्म,
रंगे जाते हैं
कागज़ , दुपट्टे और मन,
तब कहीं
बनती है मोने की पेंटिंग . .
तब जाकर लिखी जाती है
द लास्ट लीफ़ . .
और रचना कहलाती है
मास्टरपीस ।