बुआ कहती थीं,
कड़ाके की ठण्ड में जब तक
हाथ के बुने स्वेटर ना पहनो
चैन नहीं पड़ता . .
जाड़ा सहन नहीं होता ।
हाथ के बुने स्वेटर में
बुनी होती हैं
बुनने वाले की भावनाएं ।
जितने दिन
स्वेटर बुना गया होगा,
जिसके लिए बुना गया उसे
ऊन के फंदे चढ़ाते - उतारते
बहुत याद किया गया होगा ।
इसलिए हाथ के बुने स्वेटर में
स्नेह और स्मृतियों की ऊष्मा . .
आत्मीयता बसी होती है ।
जिस गुनगुनी धूप में
कभी छत पर,
कभी आँगन में,
कभी खाट पर,
कभी आरामकुर्सी पर
सुस्ताते हुए
बतियाते हुए,
बीच -बीच में
हाथ तापते हुए
स्वेटर बुना गया ,
उस कुनकुनी धूप की गरमाहट
हाथ के बुने स्वेटर
भीतर तक पहुंचाते हैं ।
मन की तंग गलियों में जमी
गलाने वाली
सर्दी को पिघलाते हैं ।
जो पहना है तुमने,
ना जाने कितनी बार
ये स्वेटर सहलाया गया है ।
सोच में डूबी
आँखें पोंछ-पोंछ कर
थपथपाया गया है ।
बहुत आराम देता है
हाथ का बुना स्वेटर ।
क्योंकि ये ऊन से नहीं
बड़े प्यार-से बुना गया है ।
आपकी लिखी रचना आज के "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 25 मार्च 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत आभार यशोदा जी .
हटाएंआपके पास भी होंगे हाथ के बुने स्वेटर ..
वाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...
धन्यवाद सुधा जी ।
हटाएंबहुत दिनों बाद आपका आना हुआ ।
बहुत अच्छा लगा ।
Every word is an expression Beautiful composition Noopuram ji
जवाब देंहटाएंthank you sanjay bhaskarji.
हटाएंSo truly written noopur!!! Bachpan ke yaad aayi gayi .... Meri bhi aur mere bacho ki bhi
जवाब देंहटाएंThank you Jyoti.
हटाएंशायद बचपन की यादें ही हमें पास ले आयें
हो सकता है फिर बड़ा होना भी रास आ जाये