शुक्रवार, 26 जनवरी 2018

The Acknowledgement Of Sacrifice


Anonymous soldiers
of peace,
Quietly,
Lay down their lives,
Fighting
on the battlefield,
for the freedom
of their country.

Their countrymen
Those who are wise,
from their secure
home's comfort,
close their eyes,
with a condescending sigh,
sipping tea coffee
from a smug mug,
endlessly analyze 
and collectively 
philosophize.

शुक्रवार, 19 जनवरी 2018

बेटियां

क्यों हो जाती हैं विदा 
घर से बेटियां ?
गुपचुप सोचते हैं सदा 
दुनिया भर के पिता ।

सूना हो जाता है आँगन सारा,
जब-जब चली जाती है बिटिया ।  
कोई नहीं रखता ध्यान इतना,
बिना कहे जितना करती हैं बेटियां ।

घर आते ही पानी का गिलास देना ।
सामान का थैला हाथ से ले लेना ।
बटुआ और चश्मा ढूंढ कर देना ।
पैंट-कमीज़ प्रेस कर रख देना ।
दवा हाथ में ला कर दे देना ।
घर भर में चिड़िया-सा चहचहाना ।
बहुत मन दुखाता है उसका चले जाना ।

जनम भर की कमाई  . . अपनी बिटिया दे देना ।
इसे ही कन्यादान कहते हैं ना ? 

पाल-पोस कर बड़ा करना,
और दूसरे घर भेज देना ।
अपने कलेजे का टुकड़ा ,
किसी और को सौंप देना ।

अच्छे संस्कार अपनी बिटिया को देना ।
उसे इसी पूँजी से घर बसाते देखना ।
या एकाकी दीपशिखा-सी स्वावलंबी बनते देखना ।
पिता के आशीर्वाद का सम्मान है ना ?
पिता की नम आँखों का स्वाभिमान है ना ?

बस कभी-कभी जब जगह पर नहीं मिलता  . . 
चश्मा  . . दवा  . . मफ़लर या बटुआ  . . 
बहुत - बहुत याद आती है बिटिया ।      
         

शनिवार, 6 जनवरी 2018

सलीका


तमाम 
मिले - जुले रंगों की 
बेतरतीब 
आड़ी - तिरछी रेखाओं में भी  
मनभावन 
तस्वीर नज़र आने लगे  . . 

मेले में खरीदी लाल - हरी 
कांच की चूड़ियां,
चटक चुनरी लहरिया, 
मेहँदी रची हथेलियां,
मिर्च कुतरता तोता,
हरी घास,
अबीर गुलाल,
गेंदा और गुलाब,  
और जो कहिये जनाब !
याद आने लगे !

कोई अच्छी - सी बात सूझे,  
मन 
जीवन का छंद 
गुनगुनाने लगे,
समझिए 
आपको सलीका आ गया !
मुबारक हो !
आपको जीना आ गया !

मंगलवार, 21 नवंबर 2017

प्राण प्रतिष्ठा



काठ की गुड़िया 
केवल सिर हिलाती है,
बोल नहीं पाती है ।
पर मोल लेने वालों को 
ऐसी ही मूक प्रतिमा 
बेहद पसंद आती है ।

काठ की गुड़िया 
अनेक प्रकार की, 
सारी दुनिया में 
पाई जाती है । 
कई नामों से 
जानी जाती है ।

मिट्टी की गुड़िया ।
मोम की  गुड़िया। 
प्लास्टर ऑफ़ पेरिस की तो 
ग़ज़ब ढाती है । 
नाक - नक़्श महीन 
और मुँह में ज़बान नहीं । 
और क्या चाहिए जी ?

हामी भरती हुई 
बेजान चीज़ भी 
बड़ी आकर्षक और 
मनभावन होती है ।
खूबसूरती की 
मिसाल होती है।  
कुल मिला कर 
कमाल होती है !

जिस दिन ये गुड़िया 
बोलने लगेगी,
ना जाने क्या-क्या 
कह देगी । 

सब की भलाई 
इसी में है,
ये गुड़िया घर में 
सजावट के लिए ही रहे ।
इसके बोलने में 
बड़ा खतरा है।  

काठ की गुड़िया  . . 
मिट्टी की गुड़िया  . .
कांच की गुड़िया  . . 
रबर की गुड़िया  . . 

जिस दिन ये गुड़िया 
बोलने लगेगी,
सुन्दर दिखे ना दिखे  . . 
अच्छी लगे ना लगे  . . 
दुनिया बदल देगी ।   

गुरुवार, 2 नवंबर 2017

आत्मबल




कब तक 
माँ दुर्गा ही 
महिषासुर मर्दन करेंगी ?
कब तक 
राजा राम ही 
रावण से युद्ध करेंगे ?

यदि महिषासुर 
और दशानन 
हमारे भीतर की ही 
दशाएं हैं, 
तो हम अपनी लड़ाई 
खुद कब लड़ेंगे ?

सामर्थ्य और 
दायित्व बोध जो 
प्रसाद में पाया हमने 
कब उस आत्मबल से 
स्वयं अपने 
मन के क्लेश 
हरेंगे हम ?


बुधवार, 25 अक्तूबर 2017

पत्तों को चुपचाप झरते देखा





















पतझड़ में 
एक एक करके 
हरे-भरे 
कुछ-कुछ पीले हो चुके 
पेड़ों से 
पत्तों को चुपचाप 
झरते देखा,
तो मन में 
पल्लवित हुई 
एक इच्छा ।

स्वेच्छा से,

यदि मन में 
गहरे पैठे 
पूर्वाग्रह और कुंठाएं 
यूँ ही आप झर जाएं,
नई संभावनाओं के लिए 
जगह बनाएं,
तो क्या खूब हो !

सहर्ष परिवर्तन का स्वागत हो !

जीवन में नित नया वसंत हो !