क्यों हो जाती हैं विदा
घर से बेटियां ?
गुपचुप सोचते हैं सदा
दुनिया भर के पिता ।
सूना हो जाता है आँगन सारा,
जब-जब चली जाती है बिटिया ।
कोई नहीं रखता ध्यान इतना,
बिना कहे जितना करती हैं बेटियां ।
घर आते ही पानी का गिलास देना ।
सामान का थैला हाथ से ले लेना ।
बटुआ और चश्मा ढूंढ कर देना ।
पैंट-कमीज़ प्रेस कर रख देना ।
दवा हाथ में ला कर दे देना ।
घर भर में चिड़िया-सा चहचहाना ।
बहुत मन दुखाता है उसका चले जाना ।
जनम भर की कमाई . . अपनी बिटिया दे देना ।
इसे ही कन्यादान कहते हैं ना ?
पाल-पोस कर बड़ा करना,
और दूसरे घर भेज देना ।
अपने कलेजे का टुकड़ा ,
किसी और को सौंप देना ।
अच्छे संस्कार अपनी बिटिया को देना ।
उसे इसी पूँजी से घर बसाते देखना ।
या एकाकी दीपशिखा-सी स्वावलंबी बनते देखना ।
पिता के आशीर्वाद का सम्मान है ना ?
पिता की नम आँखों का स्वाभिमान है ना ?
बस कभी-कभी जब जगह पर नहीं मिलता . .
चश्मा . . दवा . . मफ़लर या बटुआ . .
बहुत - बहुत याद आती है बिटिया ।
घर से बेटियां ?
गुपचुप सोचते हैं सदा
दुनिया भर के पिता ।
सूना हो जाता है आँगन सारा,
जब-जब चली जाती है बिटिया ।
कोई नहीं रखता ध्यान इतना,
बिना कहे जितना करती हैं बेटियां ।
घर आते ही पानी का गिलास देना ।
सामान का थैला हाथ से ले लेना ।
बटुआ और चश्मा ढूंढ कर देना ।
पैंट-कमीज़ प्रेस कर रख देना ।
दवा हाथ में ला कर दे देना ।
घर भर में चिड़िया-सा चहचहाना ।
बहुत मन दुखाता है उसका चले जाना ।
जनम भर की कमाई . . अपनी बिटिया दे देना ।
इसे ही कन्यादान कहते हैं ना ?
पाल-पोस कर बड़ा करना,
और दूसरे घर भेज देना ।
अपने कलेजे का टुकड़ा ,
किसी और को सौंप देना ।
अच्छे संस्कार अपनी बिटिया को देना ।
उसे इसी पूँजी से घर बसाते देखना ।
या एकाकी दीपशिखा-सी स्वावलंबी बनते देखना ।
पिता के आशीर्वाद का सम्मान है ना ?
पिता की नम आँखों का स्वाभिमान है ना ?
बस कभी-कभी जब जगह पर नहीं मिलता . .
चश्मा . . दवा . . मफ़लर या बटुआ . .
बहुत - बहुत याद आती है बिटिया ।
आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 21 जनवरी 2018 को साझा की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteश्री Digvijay Agrawal जी,
Deleteआपका बहुत आभार ।
हलचल के पन्ने पर जगह मिलती है तो कुछ और लोगों तक पहुंचना संभव हो जाता है ।
बहुत याद आती हैं बेटियां....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना।
धन्यवाद सुधाजी .
Deleteसचमुच बहुत याद आती हैं बेटियां .
जहाँ भी हों .
बहुत सुंदर
ReplyDeleteजी नीतू जी .
Deleteधन्यवाद .
सुन्दर होती है बेटियों की याद .
बेटियां ही सुनती हैं दिल की फ़रियाद .
पढ़ती रहिएगा .
सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteधन्यवाद राकेशजी .
Deleteअच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर....आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर....
ReplyDeleteकभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
संजय भास्कर
शब्दों की मुस्कुराहट
http://sanjaybhaskar.blogspot.in
आपका सदैव स्वागत है.
Deleteआपके द्वारे हम हो भी आये.
चौखट पर दिया जला आये.
कुछ बांचा.
कुछ साझा किया.
अब आना-जाना लगा रहेगा .
jaroor ji
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