गुरुवार, 27 जुलाई 2017

मैं एक मामूली मिट्टी का दिया




मैं एक मामूली 
मिट्टी का दिया हूँ ।

मैं मनोबल हूँ ।
जो अंतर में, 
अलख जगाये,
आस बँधाये ।

मैं एक सजग  
विचार हूँ ।
जो बीहड़ में 
राह बनाये ।

मैं जिजीविषा हूँ ।
जो हर हाल में, 
जीवन से 
लौ लगाये रखने का 
साहस दे ।

मैं अभय हूँ ।
जो अँधेरे और अज्ञान को
ललकारना सिखाये ।

मैं अंधकार के ललाट पर 
ज्योतिर्मय तिलक हूँ ।

मैं वंदना हूँ ।
जो सूर्य के प्रकाश की 
ऊष्मा अपने में समेटे 
दीपक राग बन जाये ।  

मैं एक मामूली 
मिट्टी का दिया हूँ ।  
       


सोमवार, 24 जुलाई 2017

मैं एक दिया हूँ





मैं एक दिया हूँ । 

उजाले में, 
कोई मुझे क्यों जलाये ?

मेरा काम ही है, 
अँधेरे में बलना । 
अँधेरा ना हो, 
तो कोई मुझे 
क्यों आज़माये ?
सूरज के रहते 
कोई क्यों दिया जलाये ?

अंधकार की 
परिणति है दिया । 
जब जब फैले
काली रजनी की स्याही
उजाले की 
एक आस है दिया । 

दिया एक 
प्रयास है,
तम को हरने का ।  
एक प्रण है, 
मनोबल का । 
एक आस्था है,
यथार्थ की स्वीकृति का ।

समय का चक्र 
यथावत घूमेगा ।   

अँधेरा तो होगा । 
पर अँधेरे का 
मुकाबला करने के लिए, 
एक दिया बहुत होगा । 


शुक्रवार, 21 जुलाई 2017

जीवेम शरदः शतं


जीवेम शरदः शतं 
सौ बरस जियो  !
अथवा जितने बरस जियो  . . 
हर पल को 
सौ गुना जियो !

नेक बनो ।
सादादिल रहो ।
कुछ अच्छा करने का 
संकल्प करो ।

कर्म करो  . .    
जैसा गीता में 
कृष्ण ने कहा ।
भक्त प्रह्लाद बनो ।
ध्रुव प्रश्न करो ।
अटल रहो  . . 
अपने चुने पथ पर ।

कीचड़ में 
कमल बन के खिलो ।
पराजय से 
परास्त मत हो । 
प्रस्तर से प्रतिमा गढ़ो ।  

धैर्य का कवच 
धारण करो ।
नदी की तरह बहो ।
अंतर्मन स्वच्छ करो ।

चाहे जो हो  . . 
भरपूर जियो ।
जीवन के 
हर अनुभव का 
मंथन करो ।
सार को गहो ।

दिये की तरह 
सजग रहो ।
जितने दिन जियो  . . 
हर एक दिन 
एक संपूर्ण जीवन जियो ।

          

मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

जिसे छिन - छिन गढ़ा गया . .


कविता है, 
कर्म की भूमिका ।

पहले कभी थी ,
मन की व्यथा 
अथवा जीवन की कथा ।
कभी - कभी कल्पना ,
अनुभव की विवेचना ।
और हमेशा 
सरलता की आभा  . . 
प्रसन्न निश्छल ह्रदय की 
मयूरपंखी छटा ।

जाने क्या - क्या
अनुभूति की गठरी में 
जाने - अनजाने जुड़ा ,
या घटा  . . 
जाने 
स्वयं ही गया ठगा ।

जो बचा ,
जो सहेजा गया -
छिन - छिन गढ़ा गया  . . 
वही बनी कविता ।