मैं एक मामूली
मिट्टी का दिया हूँ ।
मैं मनोबल हूँ ।
जो अंतर में,
अलख जगाये,
आस बँधाये ।
मैं एक सजग
विचार हूँ ।
जो बीहड़ में
राह बनाये ।
मैं जिजीविषा हूँ ।
जो हर हाल में,
जीवन से
लौ लगाये रखने का
साहस दे ।
मैं अभय हूँ ।
जो अँधेरे और अज्ञान को
ललकारना सिखाये ।
मैं अंधकार के ललाट पर
ज्योतिर्मय तिलक हूँ ।
मैं वंदना हूँ ।
जो सूर्य के प्रकाश की
ऊष्मा अपने में समेटे
दीपक राग बन जाये ।
मैं एक मामूली
मिट्टी का दिया हूँ ।
surya saa prakash rakhne wala mamulee diya ...
जवाब देंहटाएंApratim Rachna
अनाम सराहना के लिए बहुत धन्यवाद ।
हटाएंपढ़ते रहिएगा ।
बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुधा जी ।
हटाएंअंधकार के ललाट पर ज्योतिर्मय तिलक.... बहुत खूब
जवाब देंहटाएंआपको अच्छा लगा, जान कर अच्छा लगा ।
हटाएंआभार । पढ़ते रहिएगा ।
मैं अन्धकार के ललाट पर ज्योतिर्मय तिलक हूँ
जवाब देंहटाएंमैं मिट्टी का दिया ही सही पर देता को प्रकाश ही हूँ
वाह ! धन्यवाद । बहुत सुंदर ।
हटाएंइसी तरह पढ़ती रहिएगा ।
बहुत आभार । मुंशी प्रेमचंद का नाम जिस पन्ने पर हो, उस पर रत्ती भर जगह पाना भी परम सौभाग्य है ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लेख .... तारीफ-ए-काबिल .... Share करने के लिए धन्यवाद...!! :) :)
जवाब देंहटाएंकैसे जलकर दूसरों के लिए उजाला किया जाता है, यह दिए से बेहत्तर कौन समझा सकता है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना