मैं एक दिया हूँ ।
उजाले में,
कोई मुझे क्यों जलाये ?
मेरा काम ही है,
अँधेरे में बलना ।
अँधेरा ना हो,
तो कोई मुझे
क्यों आज़माये ?
सूरज के रहते
कोई क्यों दिया जलाये ?
अंधकार की
परिणति है दिया ।
जब जब फैले
काली रजनी की स्याही,
उजाले की
एक आस है दिया ।
दिया एक
प्रयास है,
तम को हरने का ।
एक प्रण है,
मनोबल का ।
एक आस्था है,
यथार्थ की स्वीकृति का ।
समय का चक्र
यथावत घूमेगा ।
अँधेरा तो होगा ।
पर अँधेरे का
मुकाबला करने के लिए,
एक दिया बहुत होगा ।
Wah bahut khuub. Diya aur Timir ka rishta purana Hai,Diya hamein hamesha jalana hai, chahey apney aaspaas ka ya apney Mann ka andhera hee duur kyun na karna ho
जवाब देंहटाएंवंदना जी, बहुत सुंदर ।
हटाएंमर्म की बात है ।
धन्यवाद ।
बहुत खूब। सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया, गिरी जी ।
हटाएंWo doha bataiye na, jismei deep dehre par rakhne se andar aur bahar ujala hota hai.
जवाब देंहटाएंराम नाम मणि दीप धर जीह देहरी द्वार ।
हटाएंतुलसी भीतर बाहरि जो चाहसि उजियार ।।
आभार अनमोल सा ।
अच्छा लिखा है आपने
जवाब देंहटाएंआपको अच्छा लगा, ये जान कर प्रसन्नता हुई ।
हटाएंनमस्ते पर आपका स्वागत है ।
हार्दिक आभार ।
Sahi farmaya!
जवाब देंहटाएंवाह-वाह...!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर आशावादी रचना प्रस्तुत की है आपने नूपुरम् जी।
सुंदर प्रस्तुति🌹
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