सोमवार, 24 जुलाई 2017

मैं एक दिया हूँ





मैं एक दिया हूँ । 

उजाले में, 
कोई मुझे क्यों जलाये ?

मेरा काम ही है, 
अँधेरे में बलना । 
अँधेरा ना हो, 
तो कोई मुझे 
क्यों आज़माये ?
सूरज के रहते 
कोई क्यों दिया जलाये ?

अंधकार की 
परिणति है दिया । 
जब जब फैले
काली रजनी की स्याही
उजाले की 
एक आस है दिया । 

दिया एक 
प्रयास है,
तम को हरने का ।  
एक प्रण है, 
मनोबल का । 
एक आस्था है,
यथार्थ की स्वीकृति का ।

समय का चक्र 
यथावत घूमेगा ।   

अँधेरा तो होगा । 
पर अँधेरे का 
मुकाबला करने के लिए, 
एक दिया बहुत होगा । 


11 टिप्‍पणियां:

  1. Wah bahut khuub. Diya aur Timir ka rishta purana Hai,Diya hamein hamesha jalana hai, chahey apney aaspaas ka ya apney Mann ka andhera hee duur kyun na karna ho

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    1. वंदना जी, बहुत सुंदर ।
      मर्म की बात है ।
      धन्यवाद ।

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  2. Wo doha bataiye na, jismei deep dehre par rakhne se andar aur bahar ujala hota hai.

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    1. राम नाम मणि दीप धर जीह देहरी द्वार ।
      तुलसी भीतर बाहरि जो चाहसि उजियार ।।

      आभार अनमोल सा ।

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  3. उत्तर
    1. आपको अच्छा लगा, ये जान कर प्रसन्नता हुई ।
      नमस्ते पर आपका स्वागत है ।
      हार्दिक आभार ।

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  4. वाह-वाह...!
    बहुत सुन्दर आशावादी रचना प्रस्तुत की है आपने नूपुरम् जी।

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  5. सुंदर प्रस्तुति🌹

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