" चाय देना एक भाई ! " कमज़ोर सी आवाज़ में अतीत बोला । चाय वाले ने अतीत की ओर देखा । डेढ़ पसली का आदमी दो-तीन दिनों में ही झटक गया था । उसका सारा परिवार कोरोना ग्रस्त अस्पताल में पङा था । ये जाने कैसे बच गया था । ख़ैर ..यहाँ तो एक से एक केस थे । बचे लोग देखभाल करने वाले, तो वे सारे अस्पताल के सामने वाले बरगद के नीचे पनाह ले चुके थे और दिन गिन रहे थे ।
चाय वाले ने अतीत के सामने चाय की गिलसिया रख दी और बोला," महाराज ! आज क्या बात है ? कोई किस्सा, कहानी, चुटकुला ..कुछ नहीं । बलब फ्यूज है क्या? सब ठीक तो है ना ? "
अतीत जैसे नींद से जागा । खीसें निपोरते हुए बोला, " क्या बताऊँ यार ! कुछ समझ में ही नहीं आता, कब सलटेगा यह मौत का कुंआ जैसा खेल !"
" क्या बोले भाईसाहब? मौत का कुंआ का खेल ?"
यह आवाज़ पास बैठे जीव से निकली थी ।
अतीत," हाँ । भैया पहले नहीं देखा । तुम्हारा भी कोई भीतर फंसा है क्या? क्या नाम है भाई ?"
जीव ने घोषणा की," मैं? कोरोना ।"
यह सुन कर चाय वाले के हाथ से गिलसिया छूट गई ! अतीत सन्न ! झटके से उठ खङा हुआ ! बोला,"ये कैसा नाम है ? "
जीव ठठा कर हँसा । " क्यों ? तुम तो खुद ही अतीत हो ! फिर भी अभी बीते नहीं !"
अचानक अतीत को करेंट-सा लगा और वो हाथ जोड़ कर जीव के कदमों में बैठ गया," अरे प्रभु ! आप ही हैं, जिनका डंका सारी दुनिया में बज रहा है ? भई कमाल कर दिए आप तो ! ऐसा हंटर घुमाए हो कि घर का घर बरबाद कर दिया ! कौन जनम का बदला लिए हो गुरु ? जरा दया-माया नहीं?" बोलते-बोलते अतीत की आवाज़ भर्रा उठी ।
जीव बोला," काहे इतना रो-धो रहे हो ? इतना ही दिल में इमोसन रहा तो ससुर हमें पैदा काहे किए ?"
अतीत," हम ? हम पैदा किए ?? तुमको ? हम पागल हैं क्या ? "
जीव,"छोङो यार ! तुम आदम जात की पुरानी आदत है ! कांड कर के मुकर जाना !"
अतीत हतप्रभ देख रहा था जीव की ओर , " कांड ? कौनसा कांड ? क्या बक रहे हो ?"
जीव," क्यों? मैं तो तुम्हारी ही नाजायज़ औलाद हूँ ना ? "
अतीत,"ऐ भाई ! कुछ भी बोलेगा ? तेरा कोई धरम-ईमान नहीं क्या ?"
जीव,"मैं क्या धरम-ईमान की पैदाइश हूँ?? तो फिर ये उम्मीद क्यों ?"
अतीत ऑंखें फाङ कर देखता रहा ।
जीव," क्यों? तुम ही लोग बता रहे हो कि ये तो मानव निर्मित जैविक हथियार है । अंधाधुंध प्रकृति का दोहन । आदमी भी तो इसी प्रकृति का एक हिस्सा है । समय रहते तुमने क्या किया ? शतुरमुर्ग की तरह आधुनिक सुविधाओं में मुँह छिपा लिया ? धृतराष्ट्र बने बैठे रहे । फिर दुर्योधन - दुशासन पर बस न चला ! अब महाभारत होने से कौन रोक सकता है ? इस तबाही के लिए क्या तुम ही ज़िम्मेदार नहीं हो? किसे दोष देते हो ?"
अतीत, चाय वाला और बाकी लोग भौंचक्के से खङे थे । मूर्तिवत ।
जीव बोला,"मरना तुम्हारे हाथ में नहीं । पर तुम जिओगे कैसे ? ये तो तुम तय करो ।"