कोई महफ़ूज़ जगह बताओ
जहाँ कुछ घङी सुक़ून मिले..
वादियाँ हरी-भरी ताज़ी हवा
शोरगुल से दूर बेफ़िक्र लम्हे ।
महफ़ूज ? चलो,आप ही बता दो !
जहाँ स्कूलों में गोली चलने लगे
बेवजह आम लोगों पर हमला हो !
वादी में जहाँ मदद भी न पहुँचे ..
सुरक्षित जगह कौनसी है बताओ ?
जहाँ मेरा भी रोज़गार फले-फूले !
कोई भी कोना महफ़ूज़ न होगा
जब तक हमारी सोच महफ़ूज़ न हो ।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में शुक्रवार 16 मई 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंदिग्विजय जी, धन्यवाद। सुबह-सुबह सजा हुआ गुलदस्ता सामने आ जाए तो इससे अच्छा श्रीगणेश क्या हो सकता है ! पर धीरे-धीरे पढ़ने वाले ना के बराबर हो गए हैं । लिखने वाले भी अन्यत्र व्यस्त हो गए हैं । क्या दिन पूरे हो गए इस मंच के ? दुखद है । परन्तु आप अंधङ में मचान संभाले हुए हैं । आपका और आप जैसे गिनती के और लेखन प्रेमी बागडोर थामे हुए हैं..हार्दिक आभार...सिलसिला बना रहे ।
हटाएंसुंदर प्रस्तुति
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