बुधवार, 14 मई 2025

महफ़ूज़


कोई महफ़ूज़ जगह बताओ

जहाँ कुछ घङी सुक़ून मिले..

वादियाँ हरी-भरी ताज़ी हवा

शोरगुल से दूर बेफ़िक्र लम्हे ।


महफ़ूज ? चलो,आप ही बता दो !

जहाँ स्कूलों में गोली चलने लगे

बेवजह आम लोगों पर हमला हो !

वादी में जहाँ मदद भी न पहुँचे ..


सुरक्षित जगह कौनसी है बताओ ?

जहाँ मेरा भी रोज़गार फले-फूले !

कोई भी कोना महफ़ूज़ न होगा

जब तक हमारी सोच महफ़ूज़ न हो ।


3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में शुक्रवार 16 मई 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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    1. दिग्विजय जी, धन्यवाद। सुबह-सुबह सजा हुआ गुलदस्ता सामने आ जाए तो इससे अच्छा श्रीगणेश क्या हो सकता है ! पर धीरे-धीरे पढ़ने वाले ना के बराबर हो गए हैं । लिखने वाले भी अन्यत्र व्यस्त हो गए हैं । क्या दिन पूरे हो गए इस मंच के ? दुखद है । परन्तु आप अंधङ में मचान संभाले हुए हैं । आपका और आप जैसे गिनती के और लेखन प्रेमी बागडोर थामे हुए हैं..हार्दिक आभार...सिलसिला बना रहे ।

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