सोमवार, 26 मई 2025

सौभाग्यवती भव !


सिंदूर नहीं, 

लाली थी सूरज की ।

जिसे मिटाया तुमने

मेरा सुहाग समझ कर ।

निसदिन होता है अस्त

सूर्य सुदूर क्षितिज पर ,

पर डूबता नहीं कभी ।

पुन: उदय होता है दिनकर

सतेज पीयूष पान कर..पहन

स्वर्णिम किरणों का मुकुट,

मस्तक पर रोली का तिलक ।

आलोक से आच्छादित आकाश

सीमा पर वीर सदा रहता है तैनात !

कितना भी तुम करो विश्वासघात!

कायर करते हैं निहत्थों पर वार !

सिंदूर मेट कर छल-कपट कर

छद्म की ढाल के पीछे छुप कर ..

तुमने जो किया पीठ पर वार !

थपथपाओ न अपनी पीठ अरे ढीठ !

उजङे सुहाग पर अक्षय है सौभाग्य !

सिंदूर चढ़ाते हैं हिंदू बजरंग बली पर !

जानते हैं जवान, रखना सिंदूर का मान !


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छायाचित्र आभार श्री करन पति






4 टिप्‍पणियां:

  1. सशक्त सुंदर अभिव्यक्ति 👌🏻👌🏻👌🏻

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 29 मई 2025 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

    जवाब देंहटाएं

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