हमारी समझ के बीच
ऊँचे पहाङ हैं..
समझना मुश्किल है
उस पार की समझ ।
उस तरफ़ कितनी
कङी धूप है,
कितनी छाँव है घनी ।
बंजर है भूमि,
या है हरियाली ।
कोई नदी
है भी या नहीं ।
फसल कौनसी
उगाई जाती,
कैसी होती है
रहने की झोंपङी ।
बच्चे कौन से
खेलते हैं खेल,
बगीचों में अक्सर
खिलते हैं कौनसे फूल ..
पर कभी-कभी
पवन बहती है जब..
लाती है अपने साथ
सुगंध की सौगात..
और कभी-कभी
हवाओं में तैरती
किसी के गाने की
सोज़ भरी आवाज़ ।
उस ओर जाए बिना
हम जानते हैं उन्हें ।
देखने और छूने की
कोई ज़रुरत नहीं ।
किसी की पहचान
होती है उसकी सुगंध,
कह देते हैं सब कुछ
उसके गाने के सुर ।
सुन्दर
जवाब देंहटाएंआभार, जोशी जी।
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 9 दिसंबर को साझा की गयी है....... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंलिंकों के पचमेले में सम्मिलित करने के लिए आपका धन्यवाद, पम्मी जी।
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