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शनिवार, 7 दिसंबर 2024

तासीर


हमारी समझ के बीच

ऊँचे पहाङ हैं..

समझना मुश्किल है

उस पार की समझ ।

उस तरफ़ कितनी

कङी धूप है,

कितनी छाँव है घनी ।

बंजर है भूमि,

या है हरियाली ।

कोई नदी

है भी या नहीं । 

फसल कौनसी

उगाई जाती,

कैसी होती है 

रहने की झोंपङी ।

बच्चे कौन से 

खेलते हैं खेल,

बगीचों में अक्सर

खिलते हैं कौनसे फूल ..

पर कभी-कभी 

पवन बहती है जब..

लाती है अपने साथ

सुगंध की सौगात..

और कभी-कभी

हवाओं में तैरती

किसी के गाने की 

सोज़ भरी आवाज़ ।

उस ओर जाए बिना

हम जानते हैं उन्हें ।

देखने और छूने की 

कोई ज़रुरत नहीं ।

किसी की पहचान

होती है उसकी सुगंध, 

कह देते हैं सब कुछ

उसके गाने के सुर ।




4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 9 दिसंबर को साझा की गयी है....... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    उत्तर
    1. लिंकों के पचमेले में सम्मिलित करने के लिए आपका धन्यवाद, पम्मी जी।

      हटाएं

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