जीवन को उत्सव जानो ।
कर्मठता में ढालो ।
परम उत्साह से सींचो ।
हर अनुभव से कुछ सीखो ।
कर्मठता में ढालो ।
परम उत्साह से सींचो ।
हर अनुभव से कुछ सीखो ।
विद्या का सार समझो ।
अवसर पर न चूको ।
परिश्रम करते रहो ।
हरि नाम जपते रहो ।
समस्याओं का सामना करो ।
विडंबनाओं से लोहा लो ।
गुरुदेव ने कहा,
और उतार दी नौका
भव सागर में ।
विडंबनाओं से लोहा लो ।
गुरुदेव ने कहा,
और उतार दी नौका
भव सागर में ।
इससे पहले उन्होंने
सिर पर हाथ रखा
और हाथ में रख दी
सबसे बड़ी पूँजी
नारायण की चवन्नी ।
सिर पर हाथ रखा
और हाथ में रख दी
सबसे बड़ी पूँजी
नारायण की चवन्नी ।
नारायण नारायण नारायण कहना
और केशव का ध्यान करना ।
सदा हँसते रहना
और निज कर्तव्य करते रहना ।
और केशव का ध्यान करना ।
सदा हँसते रहना
और निज कर्तव्य करते रहना ।
जीवन की हर कसौटी
पर उतरेगी खरी
यह संजीवनी बूटी,
तुम्हारी सबसे बड़ी पूँजी
नारायण की चवन्नी ।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 18 जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंभीगी धरती भीगी नयन की कोर !
हटाएंभीगी भावुक ह्रदय की कोर !
चटक शीर्षक भा गया !
पढ़ कर मज़ा आ गया !
बधाई सबको !
धन्यवाद सखी को !
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनुराधा जी.
हटाएंआपकी थोड़ी सी स्याही शायद इधर छलक गई होगी !
आपका स्नेह बना रहे.
धन्यवाद शास्त्रीजी.
जवाब देंहटाएंचर्चा के लिए अवश्य भेंट होगी.नमस्ते.
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंओंकारजी,बहुत बहुत आभार.
हटाएंबहुत दिनों में आपका आना हुआ.
नारायण की चवन्नी साथ लेते जाइयेगा. : )
सुंदर रचना!
जवाब देंहटाएंआभार प्रीतिजी.
जवाब देंहटाएंसुन्दर हर सद्भावना.