शुक्रवार, 20 सितंबर 2024

तीन पग भूमि


बलि बलि जाइए ऐसे

भक्त और भगवान पर ! 


भक्त राजा बलि, दानी,

विनम्र एवं परोपकारी,

धर्मात्मा महत्वाकांक्षी,

वपु जो माँगें सो देने के

अभिलाषी, किंतु यहीं..

हो गई महाबली से चूक !  


क्षण भर को विवेक पर

छाई भ्रम की बदली !

भूल गए, सर्वस्व पर नहीं

किसी का भी अधिकार !

फिर राजा कैसे कह बैठा

विप्रवर ! सेवा मैं करुँगा,

पात्र आपका मैं भरुंगा !  


परम भक्त वत्सल भगवान

झट आ गए भक्त के द्वार,

ले कर वामन अवतार !

छोटी देहाकृति धर आए

माँगी छोटी सी दक्षिणा..

बस तीन पग भूमि दान

देह की आवश्यकतानुसार ।  


बस ! इतना ही माँगा !

जागा सात्विक अहंकार!

भांप गए गुरु शुक्राचार्य !

त्याग दो दान का विचार!

पङेगा यज्ञ में व्यवधान!

भ्रमित कर रहे भगवान!

राजन ! रहिए सावधान !  


भक्त ने रखा सादर सविनय

अपने भगवान का मान !  

द्वार ठाङे ठाकुर की इच्छा

सहर्ष की बलि ने स्वीकार ।

भगवान ने लघु स्वरुप का

किया त्रिभुवन में विस्तार।

दो पग में समाया संसार !  


तीसरा पग अब रखूँ कहाँ ?

पूछते बलि से वामन विराट।  

भक्त तत्क्षण प्रभु को जान,

जान गया लीला का सार ।

भक्त की भूल स्वयं सुधारने

भक्ति का मार्ग प्रशस्त करने

स्वयं द्वार पर ठाङे भगवान 

अहो कौन मुझ सा भाग्यवान ! 


तीसरा पग मेरे शीष पर धर

कीजिए कृतार्थ कृपानिधान !  

इष्ट का विधान कर शिरोधार्य !

निभाया भक्ति का शिष्टाचार ।

छल कर छिन्न-भिन्न किया भ्रम

प्रभु ने चरणारविंद में दी शरण।

अविचल भक्ति और निष्ठा बल

निश्छल बलि ने पाया परम पद ।  



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अंतरजाल से साभार : राजा रवि वर्मा की पेंटिंग 



9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रसंग को शब्द दिए हैं ... नमन है ...

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    1. आपके सहृदय प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद, नासवा जी। प्रसंग मर्मस्पर्शी है। बार-बार याद करना बनता है। कोशिश की है।

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  2. उत्तर
    1. धन्यवाद, आलोक जी। यह प्रसंग स्मृति को बार-बार आलोकित करता है।

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 25 सितंबर 2024 को साझा की गयी है....... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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