बलि बलि जाइए ऐसे
भक्त और भगवान पर !
भक्त राजा बलि, दानी,
विनम्र एवं परोपकारी,
धर्मात्मा महत्वाकांक्षी,
वपु जो माँगें सो देने के
अभिलाषी, किंतु यहीं..
हो गई महाबली से चूक !
क्षण भर को विवेक पर
छाई भ्रम की बदली !
भूल गए, सर्वस्व पर नहीं
किसी का भी अधिकार !
फिर राजा कैसे कह बैठा
विप्रवर ! सेवा मैं करुँगा,
पात्र आपका मैं भरुंगा !
परम भक्त वत्सल भगवान
झट आ गए भक्त के द्वार,
ले कर वामन अवतार !
छोटी देहाकृति धर आए
माँगी छोटी सी दक्षिणा..
बस तीन पग भूमि दान
देह की आवश्यकतानुसार ।
बस ! इतना ही माँगा !
जागा सात्विक अहंकार!
भांप गए गुरु शुक्राचार्य !
त्याग दो दान का विचार!
पङेगा यज्ञ में व्यवधान!
भ्रमित कर रहे भगवान!
राजन ! रहिए सावधान !
भक्त ने रखा सादर सविनय
अपने भगवान का मान !
द्वार ठाङे ठाकुर की इच्छा
सहर्ष की बलि ने स्वीकार ।
भगवान ने लघु स्वरुप का
किया त्रिभुवन में विस्तार।
दो पग में समाया संसार !
तीसरा पग अब रखूँ कहाँ ?
पूछते बलि से वामन विराट।
भक्त तत्क्षण प्रभु को जान,
जान गया लीला का सार ।
भक्त की भूल स्वयं सुधारने
भक्ति का मार्ग प्रशस्त करने
स्वयं द्वार पर ठाङे भगवान
अहो कौन मुझ सा भाग्यवान !
तीसरा पग मेरे शीष पर धर
कीजिए कृतार्थ कृपानिधान !
इष्ट का विधान कर शिरोधार्य !
निभाया भक्ति का शिष्टाचार ।
छल कर छिन्न-भिन्न किया भ्रम
प्रभु ने चरणारविंद में दी शरण।
अविचल भक्ति और निष्ठा बल
निश्छल बलि ने पाया परम पद ।
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बहुत सुन्दर प्रसंग को शब्द दिए हैं ... नमन है ...
जवाब देंहटाएंआपके सहृदय प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद, नासवा जी। प्रसंग मर्मस्पर्शी है। बार-बार याद करना बनता है। कोशिश की है।
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, आलोक जी। यह प्रसंग स्मृति को बार-बार आलोकित करता है।
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, जोशी जी। नमस्ते।
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 25 सितंबर 2024 को साझा की गयी है....... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंनमस्ते, पम्मी जी. धन्यवाद.
हटाएंसुन्दर रचना
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