रंग पुकारते हैं ।
जी टटोलते हैं ।
सृष्टि की हर कोर
रंगों से सराबोर ।
ढल जाती है
रंगों की आभा
भावों में,
संवेदनाओं में,
अनुभूति में,
अभिव्यक्ति में ।
कलाकृति में ।
फ़र्क है ही क्या ? प्रकृति की छटा और मनुष्य द्वारा तूलिका से उकेरी रंग संयोजना में ?
क्वार के दिनों में
ध्यान से देखना ..
सितंबर के महीने में
रंगत कुछ और ही
होती है आकाश की ।
प्रतिस्पर्धा रंगों की
सजा देती हैं मंच
चटक रंगों का ।
कुछ रंग इन दिनों में
छिटक जाते हैं
संभवत: धरती पर ।
बिन त्यौहार वाले
समय को मापते हैं
अनगिनत रंगों से ।
पितृ भी होते होंगे
रंगों की बिछावट से
परम प्रसन्न और तृप्त।
जीवन के रंग ही तो
नहीं उस तरफ़।
इसी समय मनाया
जाता है ओणम।
फूल ही फूल आते
हैं हर तरफ़ नज़र ।
वृंदावन में राधा जू
सखियन संग मिल
बनाती हैं सांझी ।
मिट्टी और जल पर
सजीव हो उठतीं
झिलमिलाती,
होती प्रतिबिंबित
आनंद लीला ।
अभ्यास और भाव
भरते हैं विविध
आकृतियों में रंग,
जीवंत हो उठता है
कलात्मक सृजन ।
रंगों का समागम
घुल-मिल कर
रचता नया रंग ।
इतना नहीं सुगम
अंकन का गणित !
बुझाते हैं पहेली !
कभी नभ में लहराते
रंग-बिरंगी चूनर दुपट्टे !
कभी परस्पर गुंथ जाते
जैसे माला में फूल ..
सांझ समय नभ में
बिखरे रंग छन छन
सांझी में ढल रचते
बेलों से सुसज्जित
प्रभु लीला की झांकी ।
सुसज्जित सांझी ।
धरा, नभ और मन मगन देख रंगभीना अनूठा सृजन ।
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चित्र साभार : अंतरजाल और श्री करन पति
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द रविवार 29 सितंबर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंसुंदर !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंवाह! क्वार की कुंआरी रंगों में छिटकती कविता!
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