तीन गुलाब
खिले एक साथ !
छोटे से पौधे पर !
पात-पात पर आई बहार !
चतुर्दिक छाई रौनक़ !
वर्षा हो रही थम-थम ..
बूंदों का जलतरंग कर्णप्रिय
सुन कर गदगद मन मयूर
फैला कर इंद्रधनुषी पंख
बाँध कर बूंदों के नूपुर
नृत्य कर रहा झूम-झूम !
मन मगन बना विशाल गगन
तब प्रस्तुत हुआ यह प्रश्न ..
मुरझा जाएं ये सुमन ..
उससे पहले ही इनको चुन
कैसे करूँ इनका अभिनन्दन ?
क्योंकि इनकी छटा है अनमोल !
तभी सुना वारकरी का मधुर गान
पांडुरंग हरि विट्ठल ! विट्ठल विट्ठल !
रोली से लाल स्निग्ध तीन गुलाब
किये ठाकुर सेवा में सहर्ष अर्पित
मन का दीप बाल किया हरि का वंदन।
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