भावुक मन,
भावमय रहना ।
मर्म समझ
अपना मत देना ।
दुखती रग पर
संभल-संभल कर
शब्दों के फाहे रखना ।
अव्यक्त व्यथा की
थाह पा कर,
मौन से मान रखना ।
क्लांत पथिक की
कठिन राह पर
शीतल जल कूप बनना ।
अश्रु जल का खारापन
अंजुरी में भर कर,
गंगाजल सम पान करना ।
कांटों भरी
जीवन बगिया में
गुलाब की सुगंध बन बसना ।
सबके मन पर भार बहुत
तुम भाव गहन कर
मन-भुवन, भारहीन कर देना ।
बहुत ही उत्तम
जवाब देंहटाएंअनाम पाठक का अनंत आभार। नमस्ते।
हटाएंसटीक कविता
जवाब देंहटाएंअनाम पाठक का हार्दिक आभार। नमस्ते।
हटाएंमन को छू गई ।
जवाब देंहटाएंबस यही चाहिए था ! शुक्रिया !
हटाएंभावों की बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति..🙏
जवाब देंहटाएंदिलीप जी, आपकी सराहना बहुत मायने रखती है। पढ़ते रहिएगा। अपने विचार साझा करते रहिएगा। बहुत खुशी होगी। आभार। नमस्ते।
हटाएंKitne Sundar bhaav hain ♥️
जवाब देंहटाएंउतने ही जितनी सुंदर पढ़ने वालों की शुभ दृष्टि है। धन्यवाद।
हटाएंहृदय स्पर्शी 😊
जवाब देंहटाएंहृदय तल से आभार। नमस्ते।
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 5 दिसंबर 2024 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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रवींद्र जी, भावनाओं के सागर में भावुक मन की नैया उतारने के लिए हार्दिक आभार। सभी लिंक पढ़े। अच्छे लगे। नमस्ते।
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, जोशी जी। नियमित रूप से सबकी सभी रचनाएं पढ़ने और अपने विचार प्रकट करने के लिए आपका सदा ही आभार। नमस्ते।
हटाएंबहुत सुंदर प्रार्थना और कामना, मन की गहराई में छिपे शाश्वत को जगाने का आह्वान करती
जवाब देंहटाएंअनीता जी, भाव को समझने और इतने सुंदर शब्दों में निरूपित करने के लिए आपका अत्यंत आभार। नमस्ते।
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