शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2021

सही दिशा

उठो अब जागो !
दरवाज़ा कोई
खटखटा रहा,
आतुर है तुम्हें 
बुलाने को,
साथ ले जाने को ।

बाहर निकलो ।
देखो दुनिया की 
रौनक, चहल-पहल ।
काम पर सब के सब 
निकल पङे हैं ।

तुम क्यों हताश हो ?
जीवन से क्यों निराश हो ?
भागदौड़ आपाधापी से 
निरर्थक व्यस्तता से त्रस्त हो ?

चले जा रहे हैं सारे बेतहाशा 
पर इन सभी ने क्या 
मार्ग सही चुना था ?
इस अथक परिश्रम से क्या 
भला किसी का हुआ था ?

अच्छा तो ये है जटिल समस्या!
तुम्हारा चिंतन ही बन गया 
तुम्हारे कर्म पथ की बाधा !

सुनो सोचते रहने से भी क्या होगा ?
घर की बिजली का बिल ही बढेगा !
करवट बदल-बदल कर बिस्तर पर
ना किसी बिल का भुगतान होगा,
ना ही किसी का कल्याण होगा !

कुछ ना करने से और तार उलझेगा ।
दम तोङेंगे सुर, राग बिखर जाएगा ।
कुछ करने से ही जीवन क्रम सुधरेगा ।
जो ग़लत राह चुनते हैं, उन्हें जाने दो ।
तुम अपने जीवन को तो सही दिशा दो ।

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना ।

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    1. आलोक जी,अनंत आभार ।
      आपके तो नाम में ही उजाला ही उजाला है ।

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 14 फरवरी 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. थन्यवाद शास्त्री जी ।
    चर्चा कुटुंब का स्नेह बना रहे ।

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  4. सही दिशा की खोज तो स्वयं होनी चाहिए ...
    सुन्दर रचना ...

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