विलक्षण है निस्संदेह
आपकी बहुआयामी प्रतिभा ।
किंतु क्या करें बताइए
आपकी विद्वता का ?
जिसके भार तले
साधारण जन मन
दबते चले जाते हैं ।
धराशायी हो जाता है
आत्मविश्वास इनका,
तिनका-तिनका जोङा
जो साहस जुटा कर ।
लाभ क्या हुआ?
यदि ज्ञान आपका
हमेशा आंखें तरेरता,
तत्काल कर दे स्वाहा
किसी की सीखने की
प्रबल इच्छाशक्ति ?
हमने सुना तो ये था,
फल-फूल से लदा
वृक्ष और झुक जाता है ।
जो जितना ज़्यादा
जानता है,
उतना ही विनम्र
होता चला जाता है ।
यदि लक्ष्य था विद्या का
प्रभुत्व सिद्ध करना,
तो चाबुक ही क्या बुरा था,
अज्ञानी को हांकने के लिए ?
तुम बिल्कुल भूल गए क्या ?
समाज में सबको नहीं मिलता
अवसर एक जैसा सीखने का ।
गुरुता वो नहीं जो किसी सरल सीखने वाले को
खामियां गिनवाए,अहसास कराए तुच्छता का ।
विद्या है सजल आशीष माँ का,सदा साथ रहता ।
शिक्षा है एकमात्र अनिवार्य अवलंब जीवन का ।
प्रथम संस्कार है सबसे सीखते रहने की विनम्रता ।
दीक्षा मंत्र है निर्भय हो प्रश्न पूछने की स्वतंत्रता ।
अनुगत को सजग स्वालंबन में ढालने की दक्षता ।
अंतर में अंकुर आत्मविश्वास का रोपने की उदारता ।
सुंदर!
जवाब देंहटाएंज्ञान से भूखंड को नष्ट भी किया जा सकता है, और उसी ज्ञान को सत में लगा के सेवा भी की जा सकती है। Intention matters 😊
जी,अनमोल सा. उस एक नाज़ुक पल में ईश्वर पग डिगने ना दें. यही प्रार्थना है.
हटाएंहार्दिक आभार.
रास्ते में मील के पत्थर ही नहीं,
हटाएंक़दम-क़दम पर दोराहे और चौराहे भी
आएंगे और चुनना होगा मार्ग अपना.
उस क्षण मन में रखना विनम्रता.
स्पष्ट दिखाई देगा आगे का रास्ता.
धन्यवाद,अनमोल सा.
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, मनोज जी.
हटाएंनमस्ते पर आपका स्वागत है. आशा है पुनः आगमन होगा.
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, आलोक जी.
हटाएंहमेशा समय निकाल कर पढने और कुछ कहने के लिए हार्दिक आभार.
सुन्दर और प्रवाहपूर्ण रचना।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ, शास्त्रीजी.
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 23 फरवरी 2021 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद दिव्या जी. इस मंच पर स्थान देने के लिए.
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, ओंकार जी.
हटाएंआपकी सहृदय सराहना पाकर प्रसन्नता होती है.
बहुत-बहुत आभार,कामिनी जी.चर्चा का विषय बहुत अच्छा है.
जवाब देंहटाएंपढने के लिए परम उत्सुक हूँ.
गहन चिंतन! विनम्रता के बिना शिष्य ही नहीं गुरु भी अपने गुरुत्व से ढलान पर आ खड़ा होता है।
जवाब देंहटाएंसीखने और सीखाने में धैर्य दोनों में अपेक्षित है।
वैसे ज्ञान का अभिमान करने वाला ज्ञानी होता है करता?
सहज प्रवाह, मन की बात ।
सुंदर सृजन।
अपने विचार व्यक्त करने के लिए सविनय आभार आपका । संभवतः स्वामी विवेकानंद यही कहना चाहते थे जब उन्होंने शिक्षा और ज्ञान प्राप्ति में अंतर समझाया था । शायद वही फ़र्क जो आदमी और इंसान में होता है ।
हटाएंसुंदर संदेशयुक्त रचना...
जवाब देंहटाएंआपका नमस्ते पर हार्दिक स्वागत है ।
हटाएंधन्यवाद । आशा है, आपका आना-जाना अब लगा रहेगा ।
धराशायी हो जाता है
जवाब देंहटाएंआत्मविश्वास इनका,
तिनका-तिनका जोङा
जो साहस जुटा कर । सुन्दर रचना
धन्यवाद संदीप जी ।
हटाएंनमस्ते पर हार्दिक स्वागत है आपका ।
पढ़ते रहियेगा । अपने विचार व्यक्त करते रहिएगा । नमस्ते ।
प्रशंसनीय विचार ।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना।
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