उठो अब जागो !
दरवाज़ा कोई
खटखटा रहा,
आतुर है तुम्हें
बुलाने को,
साथ ले जाने को ।
बाहर निकलो ।
देखो दुनिया की
रौनक, चहल-पहल ।
काम पर सब के सब
निकल पङे हैं ।
तुम क्यों हताश हो ?
जीवन से क्यों निराश हो ?
भागदौड़ आपाधापी से
निरर्थक व्यस्तता से त्रस्त हो ?
चले जा रहे हैं सारे बेतहाशा
पर इन सभी ने क्या
मार्ग सही चुना था ?
इस अथक परिश्रम से क्या
भला किसी का हुआ था ?
अच्छा तो ये है जटिल समस्या!
तुम्हारा चिंतन ही बन गया
तुम्हारे कर्म पथ की बाधा !
सुनो सोचते रहने से भी क्या होगा ?
घर की बिजली का बिल ही बढेगा !
करवट बदल-बदल कर बिस्तर पर
ना किसी बिल का भुगतान होगा,
ना ही किसी का कल्याण होगा !
कुछ ना करने से और तार उलझेगा ।
दम तोङेंगे सुर, राग बिखर जाएगा ।
कुछ करने से ही जीवन क्रम सुधरेगा ।
जो ग़लत राह चुनते हैं, उन्हें जाने दो ।
तुम अपने जीवन को तो सही दिशा दो ।
बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना ।
जवाब देंहटाएंआलोक जी,अनंत आभार ।
हटाएंआपके तो नाम में ही उजाला ही उजाला है ।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 14 फरवरी 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंथन्यवाद शास्त्री जी ।
जवाब देंहटाएंचर्चा कुटुंब का स्नेह बना रहे ।
सही दिशा की खोज तो स्वयं होनी चाहिए ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना ...