अपना रास्ता चुन ही लिया है,
तो पहले पूरी तैयारी करना
उसके बाद ही घर से निकलना ।
रास्ता है भई यानी सबका है ।
देखो कुछ भी हो सकता है ।
हरदम आंख-कान खुले रखना ।
और ठोकर खाने से मत डरना ।
रास्ता है तो ठोकर भी लगेगी ।
बहुत दिनों तक दुखती रहेगी ।
पर डर से चलना मत छोड़ना ।
बस संभल के हर कदम रखना ।
रास्ता है खुला कड़ी धूप तो होगी ।
फेंटा सर पर बांध कर ही निकलना ।
राह में साथ पानी अवश्य रखना ।
और जेब में ज़रूर चवन्नी रखना ।
चवन्नी से आजकल क्या आता है !
बस हृदय अपना आश्वस्त होता है ।
नारायण जपने से ही क्या होता है ?
साधना को नाम का आधार होता है ।
बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद,आदरणीय जोशीजी.
हटाएंबहुत सुंदर!!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद लीना. स्वागत है.
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (29-01-2020) को "तान वीणा की माता सुना दीजिए" (चर्चा अंक - 3595) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभारी हूँ, यशोदाजी.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब लिखा है
जवाब देंहटाएंतहे-दिल से शुक्रिया, गुरमिंदर जी ।
हटाएंबहुत खूब लिखा नूपुर जी 👏👏
जवाब देंहटाएंचवन्नी से आजकल क्या आता है !
जवाब देंहटाएंबस हृदय अपना आश्वस्त होता है ।
नारायण जपने से ही क्या होता है ?
साधना को नाम का आधार होता है ।
बहुत सुंदर।
छोटी-छोटी बातों का जीवन में क्या महत्व है, आपने बखूबी उकेरा है । अपना समाज आज दिग्भ्रमित सा दिख रहा है, शायद वही छोटी बातें वो भूल चला है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर लेखन हेतु साधुवाद आदरणीया ।