तुम्हें पता तो होगा
दुनिया में कितनी
अफ़रा-तफ़री
मची हुई है
इन दिनों ।
जंगलों में
आग लग रही है ।
वृक्ष पशु पक्षी
ख़त्म हो रहे हैं ।
बाढ़ आ रही है कहीं ।
सूखा पड़ रहा है कहीं ।
ग्लेशियर पिघल रहे हैं ।
समंदर गरमा रहे हैं ।
मौसम बेमौसम बदल रहे हैं ।
फसलों पर ओले पड़ रहे हैं ।
प्रकृति डाँवाडोल है ।
मनुष्य अत्यंत भ्रमित है ।
ऐसे में तुम्हारी छोटी-सी
पेंसिल याद आ रही है,
जो मिल नहीं रही थी..
और तुम ढूंढे जा रहे थे ।
सब समझा रहे थे तुम्हें,
बापू आपकी पेंसिल तो
खत्म होने को ही थी !
दूसरी पेंसिल ले लीजिए !
पर अपना अमूल्य समय
उसे ढूंढने में मत गंवाइए !
और तुम हँस दिए थे ।
कोई भी चीज़ जब तक
काम आ सके तब तक
इस्तेमाल करनी चाहिए ।
फेंकनी नहीं चाहिए ।
बापू तुम कैसे समझ गए थे ?
एक दिन अपनी फेंकी हुई
बेकार मान ली गई चीजें ही
विकराल रूप धर लेंगी
और हमें निगल जाएंगी !
बापू हम में से बहुत सारे
तब भी नहीं समझे थे,
अब भी समझ नहीं पा रहे,
आधुनिक बहुलता के फेर में थे ।
अब भी सो-सो कर जाग रहे ।
बापू तुम थे दूरदृष्टा ।
तुमने जान लिया था,
महत्व संतुलन का
और इस नियम का ..
प्रकृति से लो जितना
कम से कम दो उतना
या उससे भी ज़्यादा
जिससे मंगल हो सबका ।
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार ७ फरवरी २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बापू की पेंसिल को भी साथ रखने के लिए अनेकानेक धन्यवाद, श्वेताजी.
हटाएंसुंदर लेखन।
जवाब देंहटाएंउपयोग करने का तरीका हर किसी को कहाँ आता है
धन्यवाद, रोहितास जी.
हटाएंजहां चाह वहां राह. जो आता नहीं, वो सीखा जा सकता है.
हम चाहें तो. : )
सटीक चिंतन देता सृजन।
जवाब देंहटाएंअनंत आभार सखी. बापू की बातें याद करने की कोशिश है.
हटाएंकभी-कभी लगता है, हम बापू के सिखाए छोटे-छोटे पर बड़े जीवन सूत्रों को भूल गए.उन्हें बस नोटों में देखना और इस्तेमाल करना याद रहा.
प्रशंसनीय
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, कौशिक जी.
हटाएंनमस्ते पर आपका स्वागत है.
आते रहिएगा.
हार्दिक आभार, अनीताजी.
जवाब देंहटाएंबापू तुम थे दूरदृष्टा ।
जवाब देंहटाएंतुमने जान लिया था,
महत्व संतुलन का
और इस नियम का ..
बहुत ही सुंदर , सटीक और चिंतनपरक सृजन ,सादर नमन आपको
कामिनी जी,आपकी स्नेहमयी सराहना के लिए आभारी हूँ ।
हटाएंबेहद शानदार लिखा ...
जवाब देंहटाएंआपने सुन ली सदा : )
हटाएंतहे-दिल से शुक्रिया !
लाजवाब चिंतन....
जवाब देंहटाएंबापू की पेंसिल ....सही कहा दूरदृष्टा थे बापू
बापू तुम कैसे समझ गए थे ?
एक दिन अपनी फेंकी हुई
बेकार मान ली गई चीजें ही
विकराल रूप धर लेंगी
और हमें निगल जाएंगी !
वाह!!!
उत्कृष्ट सृजन
सुधा जी, बापू से हमने सीखा कम, और अपने अहंकार में उनका विश्लेषण बड़ी अकड़ से करते हैं. ये सब देखते हुए एक दिन अनायास ही बापू की पेंसिल याद आ गई. सारी दुनिया इन छोटी-छोटी बातों का अनुसरण करती तो आज ये नौबत नहीं आती कि विश्व भर में पर्यावरण का संतुलन बिगड़ा हुआ है.
हटाएंआपका हार्दिक आभार.
आपका पोस्ट बहुत सार्थक है
जवाब देंहटाएंशरद गुप्ता जी, नमस्ते पर आपका स्वागत है.
हटाएंआपकी सराहना को सार्थक करने की चेष्टा रहेगी.
"कोई भी चीज़ जब तक
जवाब देंहटाएंकाम आ सके तब तक
इस्तेमाल करनी चाहिए ।
फेंकनी नहीं चाहिए ।" काश हम सभी बापू की यह बातें समय रहते समझ सकें और इनपर अमल कर सकें।
उत्कृष्ट सृजन।