क्या हुआ ?
उसने पूछा ।
जाने क्या देखा . .
मेरा उदास चेहरा ?
या देखी परेशानी
मेरी पेशानी पर ?
या पढ़ ली बेचैनी
बातों में मेरी ?
मेरे लिए बड़ी बात है ये
कि उसने पूछा तो सही ।
आप दिनों - दिन घुटते रहते हैं,
मन ही मन छटपटाते रहते हैं,
और किसी का ध्यान तक जाता नहीं ।
और फिर अचानक एक दिन
कोई पूछ बैठता है -
क्या हुआ ?
जैसे चोट पर कोई रख दे,
रुई का फाहा ।
जैसे दिल पर से उतर जाये,
बोझ मनों का ।
केवल दो शब्द . .
क्या हुआ ?
और हम किसी बेहद अपने से भी
पूछना भूल जाते हैं,
या सोच ही नहीं पाते हैं,
कितना ज़रूरी है ये पूछना भी ।
कहने को छोटी - सी बात है,
पर किसी के लिए बहुत बड़ी राहत है ।
पूछ कर देखो तो सही ।
कभी न कभी तुम्हें भी,
ज़रुरत तो पड़ेगी ही ।
दौड़ते - भागते जीना,
कुछ देर रोक कर,
ज़रूरी है ठहर कर पूछना . .
क्या हुआ ?
Thank you Rahul. Please keep reading and sharing your views.
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