माथे पर बिंदी नहीं,
कलाइयों में चूड़ियाँ नहीं,
कानों में बुँदे नहीं,
नाक में लौंग नहीं,
सूती बंगाली साड़ी नहीं,
अस्पताल के कपड़े ।
ड्रिप को देखते - देखते
बूँद - बूँद
सरकता समय . .
नहीं, नहीं,
मुझे बर्दाश्त नहीं !
माँ का ये बेरंग फीका चेहरा,
चेहरे पर दर्द की लकीरें . .
आय वी से छिदे
हाथ दुबले - पतले . .
परमपिता,
अब कुछ करो ऐसा,
मिट जाये चिंता की रेखा ।
जीवन की गरिमा
बनी रहे ।
लौट आयें ज़िंदगी में
ज़िंदादिली के रंग . .
इस निस्सार शून्य से
अब तो दो अभय !
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