समूची आबोहवा
धुली - धुली सी,
बात चल रही है
सचिन की ।
सचिन का संन्यास लेना,
हज़ारों दिलों का टूटना ।
करोड़ों दिलों पर हुक़ूमत करना,
मुस्कुराती आँखों का नम होना ।
जब सचिन ने शुरू किया
धन्यवाद कहना,
मंत्रमुग्ध सुन रहा था
स्टेडियम का कोना - कोना ।
तुम्हारे चेहरे पर वही सादगी,
वही सरल मुस्कान ।
तुम्हारे शब्दों में भी वही,
ऊँचे नभ की उड़ान ।
शायद ही बचा कोई ऐसा कीर्तिमान,
जिस पर ना लिखा हो तुम्हारा नाम ।
बहुत कम दिन ऐसे होते हैं,
जब आशाओं के ताल भरे होते हैं ।
सारी बुरी ख़बरों पर
शुभ संवाद हावी होते हैं ।
ऐसे ही थे ये दो - तीन दिन,
जब हर तरफ हो रही थी सिर्फ़
खेल, शुद्ध खेल की बात ।
तुम्हारे
चौबीस साल के
बेदाग़ सफ़र की बात ।
जैसे साफ़, सफ़ेद कागज़ पर उतारे,
मोती जैसे जज़्बात ।
जैसे तारों के शामियाने के नीचे,
चैन की साँस लेती रात ।
कुछ ऐसा सुक़ून था
फ़िज़ा में,
इधर कुछ दिन
तुम्हारे बहाने . .
धन्यवाद सचिन ।
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