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सोमवार, 23 दिसंबर 2013

क्या हुआ ?




क्या हुआ ?

उसने पूछा ।

जाने क्या देखा  . . 
मेरा उदास चेहरा ?
या देखी परेशानी
मेरी पेशानी पर ?
या पढ़ ली बेचैनी 
बातों में मेरी ?  

मेरे लिए बड़ी बात है ये 
कि उसने पूछा तो सही ।
आप दिनों - दिन घुटते रहते हैं,
मन ही मन छटपटाते रहते हैं,
और किसी का ध्यान तक जाता नहीं ।

और फिर अचानक एक दिन 
कोई पूछ बैठता है -
क्या हुआ ?

जैसे चोट पर कोई रख दे, 
रुई का फाहा ।
जैसे दिल पर से उतर जाये, 
बोझ मनों का ।

केवल दो शब्द  . . 
क्या हुआ ?

और हम किसी बेहद अपने से भी
पूछना भूल जाते हैं,
या सोच ही नहीं पाते हैं,
कितना ज़रूरी है ये पूछना भी ।

कहने को छोटी - सी बात है,
पर किसी के लिए बहुत बड़ी राहत है ।

पूछ कर देखो तो सही ।
कभी न कभी तुम्हें भी,
ज़रुरत तो पड़ेगी ही ।

दौड़ते - भागते जीना,
कुछ देर रोक कर,
ज़रूरी है ठहर कर पूछना  . . 

क्या हुआ ?


                  

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