उपहार होते हैं
कई मिज़ाज के ।
एक होते हैं व्यवहार
निभाने के लिए ।
दूजे होते हैं संवाद
बढ़ाने के लिए ।
वो कहने के लिए
जो कहते ना बने ।
गिनती के शब्दों में
हरगिज़ बांधे न बंधे ।
कुछ होते हैं
प्यार दुलार में पगे ।
मीठे बताशों से ।
कुछ होते हैं
बात समझाते हुए ।
धैर्य धन से सधे ।
कुछ होते हैं
नटखट मासूम से ।
जग भर से अनोखे ।
और कुछ होते हैं
आशीर्वाद सरीखे ।
मर्म को झंकृत करते ।
ये उपहार होते हैं
खेतों में बोए
बीज जैसे,
जिनसे उपजती है
लहलहाती फसल ।
औपचारिकता से परे ..
अचानक सूझी
कविता जैसे !
हृदय में टिमटिमाती
आस जैसे ।
बड़े सिर पर रख दें
हाथ जैसे ।
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रिश्ता तो कोई ऐसा ख़ास नहीं. पर उन्हें जय मौसाजी के संबोधन से जाना है. वरिष्ठ एवं प्रतिष्ठित कलाकार ,आर्ट स्कूल के प्रधानाध्यापक, लेखक और अपने सिद्धांतों पर अडिग व्यक्तित्व के रूप में उन्हें जाना और हमेशा यह तमन्ना रही कि कभी उनसे सीखने का अवसर मिले. वह अवसर तो पा नहीं सके पर अचानक एक दिन उनका भेजा उपहार मिला बिना किसी अवसर के ! चहेते कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की हृदयस्पर्शी पंक्तियाँ इतने सुन्दर स्वरुप में आशीर्वाद की तरह मिलीं. कविता का अक्षय पात्र ! जो चाहे इसमें समेटो ! जो चाहे बांटो !
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