सांझ की लौटती धूप
धीरे-धीरे आती है,
सोच में डूबी हौले-हौले
भोले बच्चों जैसी
फूल-पत्तियों को..
सरल सलोने स्वप्नों को
दुलारती है ।
हल्की-सी बयार से
पीठ थपथपाती है ।
धीरे-धीरे आती है,
सोच में डूबी हौले-हौले
भोले बच्चों जैसी
फूल-पत्तियों को..
सरल सलोने स्वप्नों को
दुलारती है ।
हल्की-सी बयार से
पीठ थपथपाती है ।
बस इतनी-सी बात पर
शाम रंग-बिरंगे दुपट्टों-सी
झटपट रंग जाती है ।
थके-हारे मन सी
माथे की शिकन-सी
आसमान की
सलेटी सिलवटों को,
कल्पना की कूची से
कभी चटक कभी गहरा
गुलाबी,नारंगी,जामुनी और
नीलम से नीला रंग कर
रुपहला बना देती है ।
जीवन के भले-बुरे
सारे रंगों का दिलचस्प
कोलाज बना देती है ।
शाम रंग-बिरंगे दुपट्टों-सी
झटपट रंग जाती है ।
थके-हारे मन सी
माथे की शिकन-सी
आसमान की
सलेटी सिलवटों को,
कल्पना की कूची से
कभी चटक कभी गहरा
गुलाबी,नारंगी,जामुनी और
नीलम से नीला रंग कर
रुपहला बना देती है ।
जीवन के भले-बुरे
सारे रंगों का दिलचस्प
कोलाज बना देती है ।
स्मरण कराती है ..
उठो अब दिया-बाती करो ।
संध्या वंदन करो ।
चलो आगे बढ़ो ।
समय का पथ प्रशस्त करो ।
उठो अब दिया-बाती करो ।
संध्या वंदन करो ।
चलो आगे बढ़ो ।
समय का पथ प्रशस्त करो ।