सोमवार, 11 जून 2018

निष्ठा


अंजुरी भर जल में
आकाश की परछाईं है ।
मिट्टी के छोटे से दीपक ने
सूरज से आंख मिलाई है ।
घर के टूटे-पुराने गमले में
हरी-हरी जो कोपल फूटी है ।
उसने अनायास ही मेरे मन में
जीवन के प्रति निष्ठा रोपी है ।
हो सकता है ये बात अटपटी लगे
पर धूप ने भी अपनी मुहर लगाई है ।


शनिवार, 9 जून 2018

गुलमोहर



दहकते नारंगी 
बेल-बूटे
कढ़े हुए हैं
उस पेड़ के
हरे उत्तरीय पर,
जिसके पास से
में रोज़ गुज़रता हूँ ।
मुस्कुराते हुए,
हाथ हिलाते हुए,
सोचते हुए...
कड़ी धूप में ही
खिलते हैं गुलमोहर ।
ये याद रहे ।

शुक्रवार, 1 जून 2018

हिसाब


सब हिसाब मांगते हैं ।  
पल-पल का  हिसाब मांगते हैं ।

बच्चे अपने माँ-बाप से  
गिन-गिन कर हिसाब मांगते हैं। 
पूछते हैं बार-बार गुस्से से, 
आपने हमारे लिए क्या किया ?
जो किया क्या वो काफ़ी था ?
जो नहीं किया उसका हिसाब कौन देगा ?

पति-पत्नी एक दूसरे से,  
एक दूसरे के परिवारों से, 
चुन-चुन कर हिसाब मांगते हैं। 
तुमने मेरे साथ ऐसा किया !
तुमने मुझे क्या से क्या बना दिया !
तुम्हारे घरवालों को मैंने कितना झेला !
कौन इन बातों का हिसाब देगा ?

अपने दोस्त हिसाब मांगते हैं। 
दोस्ती की बदौलत नफ़ा-नुक्सान जो हुआ ,
एक-एक पाई का हिसाब मांगते हैं । 
इतने दिनों की दोस्ती में मुझे क्या मिला ?
तुमने आख़िर मेरे लिए क्या किया ?
मैंने जो निष्काम भाव से तेरे लिए किया,
उस निस्वार्थ मित्रता का हिसाब कौन देगा ?

सब हिसाब मांगते हैं। 
और एक दिन ऐसा आता है,
जब जीवन हमसे हिसाब मांगता है । 
तुम्हें तो मैंने जीवन उपहार दिया था । 
तुमने उसे हिसाब-क़िताब कैसे समझ लिया ?
संसार ने तुम्हें बहुत कुछ दिया । 
जो रह गया या कलेजे को बींध गया,
तुमने उसे ही जीवन की धुरी बना लिया ?
जीवन का सार जो तुमने नहीं जाना,
उसका हिसाब कौन देगा ?


गुरुवार, 17 मई 2018

सच्चा रामबाण नुस्खा


माँ की झिड़की में माँ का दुलार,
माँ की महिमा अपरंपार !
जितने माँ ने कान उमेंठे,
उतने मेरे भाग जागे। 
माँ का रूतबा शानदार ! 
शाही फ़रमान है होशियार !
माँ के हाथ में अदृश्य तलवार,
भागें भूत के नाना प्रकार !
माँ ने जब-जब आँख तरेरी,
टेढ़ी ग्रहदशा हो गई सीधी। 
माँ की खा-खा नित फटकार,
सुधर गया पाजी संसार !
जब भी खाई माँ से मार,
जाग गया सोया स्वाभिमान !
माँ का गुस्सा तेरह का पहाड़ा,
पर समझो तो हो जाए बेड़ा पार !      
माँ का डांटना बारंबार,
नालायकी का उत्तम उपचार !
फांकते रहिए सुबह-शाम,
पाइए स्वास्थ्य और सदाचार।    

शुक्रवार, 27 अप्रैल 2018

हर नया दिन





हर नया दिन 
एक फूल की तरह
खिलता है,
और कहता है  . .
उठो जागो !
बाहर चलो !
शुरू करो
कोई अच्छा काम,
लेकर प्रभु का नाम 
आगे जो होगा
सो होगा,
अभी तो
कोशिश करो,
बन जाएं बिगड़े काम ।

देखो, 
मुझे भी पता है ।
कुछ देर की छटा है ।
जो खिलता है
मुरझाता है ।
पर जब तक
खिलता है,
मुस्कुराता है ।
भीतर जंगले के 
गमले में,
या मिट्टी की क्यारी में ।
जूड़े में सजे,
या अर्पित हो
देव के चरणों में ।
सेहरे में झूले
या आप ही
मिट्टी में मिल जाये ।
चाहे किताबों में
रखा सूख जाए ।
फूल जब तक 
खिलता है,
मुस्कुराता है 
फिर स्मृति में
सुगंध बन बस जाता है ।

हर नया दिन
फूल की तरह
खिलता है 
तुम भी खिलो 
जीवन के हर पल में 
सुगंध बनो,


बसो सबके मन में ।


सोमवार, 23 अप्रैल 2018

किताब




मेरे ज़हन में 
एक किताब है, 
जिसे बड़े जतन से 
संभाल कर रखा मैंने ।  
ये किताब  . . किताब नहीं 
इबादत है ।
इसमें दर्ज हैं 
वो सारी बातें, 
जो सच्चे मन से 
चाही थीं कभी  . . 
कुछ करते बनीं,
कुछ रह गईं रखी 
मेज़ की आख़िरी  
दराज में ।     
हो  सकता है, 
कभी कोई 
मेरे ज़हन को तलाशे,
और उसे मिल जाए  
यही किताब जो  मेरी है,  
पर मैंने उसके नाम की है । 


रविवार, 1 अप्रैल 2018

मास्टरपीस




जो कह कर भी 
कही ना जा सकीं,
उन बातों की छाप ही 
कहलाती है कल्पना ।

कागज़ ,कैनवस या  
मन का कोना,
कहीं भी 
लिख डालो ,
या रंग दो  . . 
जो उस वक़्त सही लगता हो, 
जब  ह्रदय में उठा हो ज्वार 
या उमड़ी हो वेदना । 

कह ना पाओ 
तो कोलाज बनाओ 
अनुभूतियों का । 
या सजाओ  
रंगोली या अल्पना 
उस रास्ते पर, 
जहां से 
थके-हारे मायूस लोग 
गुज़रते हों ।
यह मौन अभिवादन, 
शायद उन्हें 
ऐसे किसी की 
याद दिला दे, 
जिसने हमेशा 
उनकी भावनाओं का 
किया था आदर । 

या काढ़ो चादर पर 
रुपहले बेल,बूटे और फूल 
जो उन दिनों की 
स्मृति के पट खोल दे,   
जब बिना बुलाये  . .  
माँ की गोदी में 
सिर रखते ही 
झट से आ जाती थी  . .  
सुन्दर सपनों वाली नींद । 

सोच कर नहीं, 
महसूस कर 
जब लिखी जाती है नज़्म, 
रंगे जाते हैं 
कागज़ , दुपट्टे और मन, 
तब कहीं 
बनती है मोने की पेंटिंग  . .  
तब जाकर लिखी जाती है 
द लास्ट लीफ़  . . 
और रचना कहलाती है 
मास्टरपीस ।