सोमवार, 11 जून 2018
शनिवार, 9 जून 2018
गुलमोहर
शुक्रवार, 1 जून 2018
हिसाब
सब हिसाब मांगते हैं ।
पल-पल का हिसाब मांगते हैं ।
बच्चे अपने माँ-बाप से
गिन-गिन कर हिसाब मांगते हैं।
पूछते हैं बार-बार गुस्से से,
आपने हमारे लिए क्या किया ?
जो किया क्या वो काफ़ी था ?
जो नहीं किया उसका हिसाब कौन देगा ?
पति-पत्नी एक दूसरे से,
एक दूसरे के परिवारों से,
चुन-चुन कर हिसाब मांगते हैं।
तुमने मेरे साथ ऐसा किया !
तुमने मुझे क्या से क्या बना दिया !
तुम्हारे घरवालों को मैंने कितना झेला !
कौन इन बातों का हिसाब देगा ?
अपने दोस्त हिसाब मांगते हैं।
दोस्ती की बदौलत नफ़ा-नुक्सान जो हुआ ,
एक-एक पाई का हिसाब मांगते हैं ।
इतने दिनों की दोस्ती में मुझे क्या मिला ?
तुमने आख़िर मेरे लिए क्या किया ?
मैंने जो निष्काम भाव से तेरे लिए किया,
उस निस्वार्थ मित्रता का हिसाब कौन देगा ?
सब हिसाब मांगते हैं।
और एक दिन ऐसा आता है,
जब जीवन हमसे हिसाब मांगता है ।
तुम्हें तो मैंने जीवन उपहार दिया था ।
तुमने उसे हिसाब-क़िताब कैसे समझ लिया ?
संसार ने तुम्हें बहुत कुछ दिया ।
जो रह गया या कलेजे को बींध गया,
तुमने उसे ही जीवन की धुरी बना लिया ?
जीवन का सार जो तुमने नहीं जाना,
उसका हिसाब कौन देगा ?
गुरुवार, 17 मई 2018
सच्चा रामबाण नुस्खा
माँ की झिड़की में माँ का दुलार,
माँ की महिमा अपरंपार !
जितने माँ ने कान उमेंठे,
उतने मेरे भाग जागे।
माँ का रूतबा शानदार !
शाही फ़रमान है होशियार !
माँ के हाथ में अदृश्य तलवार,
भागें भूत के नाना प्रकार !
माँ ने जब-जब आँख तरेरी,
टेढ़ी ग्रहदशा हो गई सीधी।
माँ की खा-खा नित फटकार,
सुधर गया पाजी संसार !
जब भी खाई माँ से मार,
जाग गया सोया स्वाभिमान !
माँ का गुस्सा तेरह का पहाड़ा,
पर समझो तो हो जाए बेड़ा पार !
माँ का डांटना बारंबार,
नालायकी का उत्तम उपचार !
फांकते रहिए सुबह-शाम,
पाइए स्वास्थ्य और सदाचार।
शुक्रवार, 27 अप्रैल 2018
हर नया दिन
हर नया दिन
एक फूल की तरह
खिलता है,
और कहता है . .
उठो जागो !
बाहर चलो !
शुरू करो
कोई अच्छा काम,
लेकर प्रभु का नाम ।
आगे जो होगा
सो होगा,
अभी तो
कोशिश करो,
बन जाएं बिगड़े काम ।
देखो,
मुझे भी पता है ।
कुछ देर की छटा है ।
जो खिलता है
मुरझाता है ।
पर जब तक
खिलता है,
मुस्कुराता है ।
भीतर जंगले के
गमले में,
या मिट्टी की क्यारी में ।
जूड़े में सजे,
या अर्पित हो
देव के चरणों में ।
सेहरे में झूले
या आप ही
मिट्टी में मिल जाये ।
चाहे किताबों में
रखा सूख जाए ।
फूल जब तक
खिलता है,
मुस्कुराता है ।
फिर स्मृति में
सुगंध बन बस जाता है ।
हर नया दिन
फूल की तरह
खिलता है ।
तुम भी खिलो
जीवन के हर पल में ।
सुगंध बनो,
बसो सबके मन में ।
सोमवार, 23 अप्रैल 2018
किताब
मेरे ज़हन में
एक किताब है,
जिसे बड़े जतन से
संभाल कर रखा मैंने ।
ये किताब . . किताब नहीं
इबादत है ।
इसमें दर्ज हैं
वो सारी बातें,
जो सच्चे मन से
चाही थीं कभी . .
कुछ करते बनीं,
कुछ रह गईं रखी
मेज़ की आख़िरी
दराज में ।
हो सकता है,
कभी कोई
मेरे ज़हन को तलाशे,
और उसे मिल जाए
यही किताब जो मेरी है,
पर मैंने उसके नाम की है ।
रविवार, 1 अप्रैल 2018
मास्टरपीस
जो कह कर भी
कही ना जा सकीं,
उन बातों की छाप ही
कहलाती है कल्पना ।
कागज़ ,कैनवस या
मन का कोना,
कहीं भी
लिख डालो ,
या रंग दो . .
जो उस वक़्त सही लगता हो,
जब ह्रदय में उठा हो ज्वार
या उमड़ी हो वेदना ।
कह ना पाओ
तो कोलाज बनाओ
अनुभूतियों का ।
या सजाओ
रंगोली या अल्पना
उस रास्ते पर,
जहां से
थके-हारे मायूस लोग
गुज़रते हों ।
यह मौन अभिवादन,
शायद उन्हें
ऐसे किसी की
याद दिला दे,
जिसने हमेशा
उनकी भावनाओं का
किया था आदर ।
या काढ़ो चादर पर
रुपहले बेल,बूटे और फूल
जो उन दिनों की
स्मृति के पट खोल दे,
जब बिना बुलाये . .
माँ की गोदी में
सिर रखते ही
झट से आ जाती थी . .
सुन्दर सपनों वाली नींद ।
सोच कर नहीं,
महसूस कर
जब लिखी जाती है नज़्म,
रंगे जाते हैं
कागज़ , दुपट्टे और मन,
तब कहीं
बनती है मोने की पेंटिंग . .
तब जाकर लिखी जाती है
द लास्ट लीफ़ . .
और रचना कहलाती है
मास्टरपीस ।
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