सोमवार, 23 अप्रैल 2018

किताब




मेरे ज़हन में 
एक किताब है, 
जिसे बड़े जतन से 
संभाल कर रखा मैंने ।  
ये किताब  . . किताब नहीं 
इबादत है ।
इसमें दर्ज हैं 
वो सारी बातें, 
जो सच्चे मन से 
चाही थीं कभी  . . 
कुछ करते बनीं,
कुछ रह गईं रखी 
मेज़ की आख़िरी  
दराज में ।     
हो  सकता है, 
कभी कोई 
मेरे ज़हन को तलाशे,
और उसे मिल जाए  
यही किताब जो  मेरी है,  
पर मैंने उसके नाम की है । 


रविवार, 1 अप्रैल 2018

मास्टरपीस




जो कह कर भी 
कही ना जा सकीं,
उन बातों की छाप ही 
कहलाती है कल्पना ।

कागज़ ,कैनवस या  
मन का कोना,
कहीं भी 
लिख डालो ,
या रंग दो  . . 
जो उस वक़्त सही लगता हो, 
जब  ह्रदय में उठा हो ज्वार 
या उमड़ी हो वेदना । 

कह ना पाओ 
तो कोलाज बनाओ 
अनुभूतियों का । 
या सजाओ  
रंगोली या अल्पना 
उस रास्ते पर, 
जहां से 
थके-हारे मायूस लोग 
गुज़रते हों ।
यह मौन अभिवादन, 
शायद उन्हें 
ऐसे किसी की 
याद दिला दे, 
जिसने हमेशा 
उनकी भावनाओं का 
किया था आदर । 

या काढ़ो चादर पर 
रुपहले बेल,बूटे और फूल 
जो उन दिनों की 
स्मृति के पट खोल दे,   
जब बिना बुलाये  . .  
माँ की गोदी में 
सिर रखते ही 
झट से आ जाती थी  . .  
सुन्दर सपनों वाली नींद । 

सोच कर नहीं, 
महसूस कर 
जब लिखी जाती है नज़्म, 
रंगे जाते हैं 
कागज़ , दुपट्टे और मन, 
तब कहीं 
बनती है मोने की पेंटिंग  . .  
तब जाकर लिखी जाती है 
द लास्ट लीफ़  . . 
और रचना कहलाती है 
मास्टरपीस ।   
    

शनिवार, 31 मार्च 2018

चरैवेति चरैवेति ....


चलते रहो ।
मुसलसल सफ़र में रहो ।
मंज़िल तक पहुंचो,
ना पहुंचो ।
चलते रहो ।

मील के पत्थरों से राह पूछो ।
बरगद की छांव में कुछ देर सुस्ता लो ।
नदी के बहते पानी में तैरो ।
धूप में तपो ।
रास्ते की धूल फांको ।
बारिश में भीगो ।
आते-जाते मुसाफ़िरों का हाल पूछो ।
जिसे ज़रूरत हो,
उसकी मदद करो ।

जहां रुको,
मेहनत करो ।
चार पैसे कमाओ ।
मेहनत के पैसों को
खर्च करने का स्वाद चखो ।

राहगीरों से मिलो-जुलो ।
दुख-सुख का पाठ पढ़ो ।
फिर आगे बढ़ो ।

एक जगह मत रुको ।
हर कोस पर जहां पानी बदलता हो ।
हर कोस पर जहां बोली बदलती हो ।
उस रास्ते को एक-सा मत जानो ।
उठो ।
हर मोड़ पर बदलते जीवन को परखो ।
हर नए अनुभव को चखो ।
हर उतार-चढ़ाव का मज़ा लो ।

चलते रहो ।
कहीं पहुंचो ना पहुंचो ।
यात्रा का आनंद लो ।
कुछ नहीं तो,
बहुत कुछ जान जाओगे ।
खुद अपने-आप को,
और आसपास को
बेहतर समझ पाओगे ।

चलते रहो ।
सूर्य चंद्र तारों और समय को
साथ चलते देखो ।
कोई नहीं रुकता ।
तुम भी मत रुको ।
अपना प्रारब्ध ख़ुद रचो ।
उसे भी साथ लेकर चलो ।
चलते रहो ।

चलते रहो ।