शनिवार, 31 मार्च 2018

चरैवेति चरैवेति ....


चलते रहो ।
मुसलसल सफ़र में रहो ।
मंज़िल तक पहुंचो,
ना पहुंचो ।
चलते रहो ।

मील के पत्थरों से राह पूछो ।
बरगद की छांव में कुछ देर सुस्ता लो ।
नदी के बहते पानी में तैरो ।
धूप में तपो ।
रास्ते की धूल फांको ।
बारिश में भीगो ।
आते-जाते मुसाफ़िरों का हाल पूछो ।
जिसे ज़रूरत हो,
उसकी मदद करो ।

जहां रुको,
मेहनत करो ।
चार पैसे कमाओ ।
मेहनत के पैसों को
खर्च करने का स्वाद चखो ।

राहगीरों से मिलो-जुलो ।
दुख-सुख का पाठ पढ़ो ।
फिर आगे बढ़ो ।

एक जगह मत रुको ।
हर कोस पर जहां पानी बदलता हो ।
हर कोस पर जहां बोली बदलती हो ।
उस रास्ते को एक-सा मत जानो ।
उठो ।
हर मोड़ पर बदलते जीवन को परखो ।
हर नए अनुभव को चखो ।
हर उतार-चढ़ाव का मज़ा लो ।

चलते रहो ।
कहीं पहुंचो ना पहुंचो ।
यात्रा का आनंद लो ।
कुछ नहीं तो,
बहुत कुछ जान जाओगे ।
खुद अपने-आप को,
और आसपास को
बेहतर समझ पाओगे ।

चलते रहो ।
सूर्य चंद्र तारों और समय को
साथ चलते देखो ।
कोई नहीं रुकता ।
तुम भी मत रुको ।
अपना प्रारब्ध ख़ुद रचो ।
उसे भी साथ लेकर चलो ।
चलते रहो ।

चलते रहो ।



बुधवार, 28 मार्च 2018

हमेशा दिल की बात करना




तुम एक शायर हो ।
तुम्हें पता है ? 
ना जाने 
कितने लोगों का आसरा 
तुम्हारा पता है ।
जिस पते पर 
मन ही मन में, 
इन लोगों ने 
अपने दिल का हाल 
लिख भेजा है ।  
तुम्हारे दिल तक उनका 
पैग़ाम पहुंचा है क्या ?
अगर हाँ  . . 
तो ख़याल रखना इनका । 

हज़ारों की तादाद में,
या अकेले , 
ये तुमसे 
आस लगाये,  
टकटकी बांधे 
बैठे होंगे,
कहीं मंच के सामने । 
तुम हर एक को नहीं पहचानते ।   
बेहद मामूली लोग ये . .  
ठीक से दाद देना भी 
नहीं जानते । 
इनके लिए, 
तुम ग़ज़ल कहना ।  
इनके लिए, 
तुम नज़्म पढ़ना । 

तुम्हारा कहा 
शायद इनके किसी काम आए। 
ये बावले !
तुम्हारी शायरी की 
उंगली थामे, 
एक पूरी ज़िंदगी जी लेंगे !

इसलिए, 
माइक के सामने 
जब तुम बुलाये जाओ,
तुम्हें वास्ता  
अपनी कलम का  . . 
उन तमाम बातों का 
जिन्होंने तुम्हें शायर बनाया  . .  
तुम सिर्फ़ 
उनसे मुख़ातिब होना, 
जो तुम्हारा लिखा  
जीते हैं । 
जिन्होंने शायरी से 
सच्ची मोहब्बत की है । 
जो अपने दिल की बात 
तुमसे सुनने आये हैं । 
तुम अपना कलाम 
उनके लिए पढ़ना ।  
हमेशा दिल की बात कहना । 

जीतेगा मनोबल




कौन कह सकता है ,
सूरदास देख नहीं सकते थे ?
सूर की दृष्टि से ही 
हर भक्त ने 
कृष्ण लीला का 
भावमय दर्शन किया ।

बिना जाने 
कौन मान सकता था ?
हेलेन केलर ना सुन सकती थीं ,
ना देख सकती थीं ।
पर जानती सब थीं ।    
उनसे ज़्यादा 
भरपूर जीवन किसने जिया ?
सारे संसार को उन्होंने 
प्रसन्न और कर्मठ जीवन का 
सुन्दर दर्शन दिया ।

हेलेन केलर को देखना सिखाया 
एक टीचर के विश्वास ने ।

सूरदास ने जीवन भक्ति से साधा 
और मन की आँखों से देखा ।

सामर्थ्य जब कम हो,
युद्ध मनोबल से जीते जाते हैं ।