मंगलवार, 20 फ़रवरी 2018
कमल के फूल
शुक्रवार, 26 जनवरी 2018
निराला
एक हुए थे निराला
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ।
जिनकी कालजयी रचना,
राम की शक्ति पूजा,
शूरवीरों की आराधना,
अब तक अलख जगाती है ।
एक
सपूत भारत माता के
बहादुर सिपाही ये -
कॉर्पोरल ज्योति प्रकाश निराला ।
जिस शूरवीर ने
कर दिखाया,
वास्तव में
कैसे निभाई जाती है
राम की शक्ति पूजा ।
कैसे चढ़ाया जाता है
जीवन का नैवेद्य ।
कैसे संपन्न होती है
देशभक्ति आराधना ।
The Acknowledgement Of Sacrifice
Anonymous soldiers
of peace,
Quietly,
Lay down their lives,
Fighting
on the battlefield,
for the freedom
of their country.
Their countrymen
Those who are wise,
from their secure
home's comfort,
close their eyes,
with a condescending sigh,
sipping tea coffee
from a smug mug,
endlessly analyze
and collectively
philosophize.
शुक्रवार, 19 जनवरी 2018
बेटियां
क्यों हो जाती हैं विदा
घर से बेटियां ?
गुपचुप सोचते हैं सदा
दुनिया भर के पिता ।
सूना हो जाता है आँगन सारा,
जब-जब चली जाती है बिटिया ।
कोई नहीं रखता ध्यान इतना,
बिना कहे जितना करती हैं बेटियां ।
घर आते ही पानी का गिलास देना ।
सामान का थैला हाथ से ले लेना ।
बटुआ और चश्मा ढूंढ कर देना ।
पैंट-कमीज़ प्रेस कर रख देना ।
दवा हाथ में ला कर दे देना ।
घर भर में चिड़िया-सा चहचहाना ।
बहुत मन दुखाता है उसका चले जाना ।
जनम भर की कमाई . . अपनी बिटिया दे देना ।
इसे ही कन्यादान कहते हैं ना ?
पाल-पोस कर बड़ा करना,
और दूसरे घर भेज देना ।
अपने कलेजे का टुकड़ा ,
किसी और को सौंप देना ।
अच्छे संस्कार अपनी बिटिया को देना ।
उसे इसी पूँजी से घर बसाते देखना ।
या एकाकी दीपशिखा-सी स्वावलंबी बनते देखना ।
पिता के आशीर्वाद का सम्मान है ना ?
पिता की नम आँखों का स्वाभिमान है ना ?
बस कभी-कभी जब जगह पर नहीं मिलता . .
चश्मा . . दवा . . मफ़लर या बटुआ . .
बहुत - बहुत याद आती है बिटिया ।
घर से बेटियां ?
गुपचुप सोचते हैं सदा
दुनिया भर के पिता ।
सूना हो जाता है आँगन सारा,
जब-जब चली जाती है बिटिया ।
कोई नहीं रखता ध्यान इतना,
बिना कहे जितना करती हैं बेटियां ।
घर आते ही पानी का गिलास देना ।
सामान का थैला हाथ से ले लेना ।
बटुआ और चश्मा ढूंढ कर देना ।
पैंट-कमीज़ प्रेस कर रख देना ।
दवा हाथ में ला कर दे देना ।
घर भर में चिड़िया-सा चहचहाना ।
बहुत मन दुखाता है उसका चले जाना ।
जनम भर की कमाई . . अपनी बिटिया दे देना ।
इसे ही कन्यादान कहते हैं ना ?
पाल-पोस कर बड़ा करना,
और दूसरे घर भेज देना ।
अपने कलेजे का टुकड़ा ,
किसी और को सौंप देना ।
अच्छे संस्कार अपनी बिटिया को देना ।
उसे इसी पूँजी से घर बसाते देखना ।
या एकाकी दीपशिखा-सी स्वावलंबी बनते देखना ।
पिता के आशीर्वाद का सम्मान है ना ?
पिता की नम आँखों का स्वाभिमान है ना ?
बस कभी-कभी जब जगह पर नहीं मिलता . .
चश्मा . . दवा . . मफ़लर या बटुआ . .
बहुत - बहुत याद आती है बिटिया ।
रविवार, 14 जनवरी 2018
शनिवार, 6 जनवरी 2018
सलीका
मिले - जुले रंगों की
बेतरतीब
आड़ी - तिरछी रेखाओं में भी
मनभावन
तस्वीर नज़र आने लगे . .
मेले में खरीदी लाल - हरी
कांच की चूड़ियां,
चटक चुनरी लहरिया,
मेहँदी रची हथेलियां,
मिर्च कुतरता तोता,
हरी घास,
अबीर गुलाल,
गेंदा और गुलाब,
और जो कहिये जनाब !
याद आने लगे !
कोई अच्छी - सी बात सूझे,
मन
जीवन का छंद
गुनगुनाने लगे,
समझिए
आपको सलीका आ गया !
मुबारक हो !
आपको जीना आ गया !
सदस्यता लें
संदेश (Atom)