शुक्रवार, 21 जुलाई 2017

जीवेम शरदः शतं


जीवेम शरदः शतं 
सौ बरस जियो  !
अथवा जितने बरस जियो  . . 
हर पल को 
सौ गुना जियो !

नेक बनो ।
सादादिल रहो ।
कुछ अच्छा करने का 
संकल्प करो ।

कर्म करो  . .    
जैसा गीता में 
कृष्ण ने कहा ।
भक्त प्रह्लाद बनो ।
ध्रुव प्रश्न करो ।
अटल रहो  . . 
अपने चुने पथ पर ।

कीचड़ में 
कमल बन के खिलो ।
पराजय से 
परास्त मत हो । 
प्रस्तर से प्रतिमा गढ़ो ।  

धैर्य का कवच 
धारण करो ।
नदी की तरह बहो ।
अंतर्मन स्वच्छ करो ।

चाहे जो हो  . . 
भरपूर जियो ।
जीवन के 
हर अनुभव का 
मंथन करो ।
सार को गहो ।

दिये की तरह 
सजग रहो ।
जितने दिन जियो  . . 
हर एक दिन 
एक संपूर्ण जीवन जियो ।

          

मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

जिसे छिन - छिन गढ़ा गया . .


कविता है, 
कर्म की भूमिका ।

पहले कभी थी ,
मन की व्यथा 
अथवा जीवन की कथा ।
कभी - कभी कल्पना ,
अनुभव की विवेचना ।
और हमेशा 
सरलता की आभा  . . 
प्रसन्न निश्छल ह्रदय की 
मयूरपंखी छटा ।

जाने क्या - क्या
अनुभूति की गठरी में 
जाने - अनजाने जुड़ा ,
या घटा  . . 
जाने 
स्वयं ही गया ठगा ।

जो बचा ,
जो सहेजा गया -
छिन - छिन गढ़ा गया  . . 
वही बनी कविता ।
          

शनिवार, 18 फ़रवरी 2017

कमाई


"पाँच रुपये का गम देना" . . 
स्टेशनरी की दुकान पर  
एक बच्चे ने कहा  . . 
तो हँसी आ गई !

मन में सोचा -
बच्चा है !
तब ही 
पैसे देकर 
ग़म खरीद रहा है !

मासूम है !
दुनिया की 
रवायतों से 
अनजान है,
सो ग़म का 
सही इस्तमाल करना 
जानता है !
ग़म पचाना 
जानता है !
सो पैसे देकर 
ग़म खरीदने की हिमाक़त 
कर रहा है !

बड़ा होता 
तो कहता  . . 
भई खरीदना ही है 
तो खुशी खरीदो !
दिल का सुकून खरीदो !
ग़म तो मुफ़्त में 
मिलता है !
बिन बुलाया 
मेहमान है !
आ जाए तो फिर           
जाने का नाम ना ले !
और खुशी ?
ढूँढ़े से नहीं मिलती !

वही तो !
वो बच्चा है  . . 
उसे भी पता है,
खरीदने से
खुशी नहीं मिलती !
ये बाज़ार में 
बिकने वाली 
चीज़ नहीं !

ये नियामत है -
खुशी और 
दिल का सुकून !
अपनी मेहनत से और  
अपनों की दुआओं से 
फलती है !
ये मिलती नहीं,
कमाई जाती है !