"पाँच रुपये का गम देना" . .
स्टेशनरी की दुकान पर
एक बच्चे ने कहा . .
तो हँसी आ गई !
मन में सोचा -
बच्चा है !
तब ही
पैसे देकर
ग़म खरीद रहा है !
मासूम है !
दुनिया की
रवायतों से
अनजान है,
सो ग़म का
सही इस्तमाल करना
जानता है !
ग़म पचाना
जानता है !
सो पैसे देकर
ग़म खरीदने की हिमाक़त
कर रहा है !
बड़ा होता
तो कहता . .
भई खरीदना ही है
तो खुशी खरीदो !
दिल का सुकून खरीदो !
ग़म तो मुफ़्त में
मिलता है !
बिन बुलाया
मेहमान है !
आ जाए तो फिर
जाने का नाम ना ले !
और खुशी ?
ढूँढ़े से नहीं मिलती !
वही तो !
वो बच्चा है . .
उसे भी पता है,
खरीदने से
खुशी नहीं मिलती !
ये बाज़ार में
बिकने वाली
चीज़ नहीं !
ये नियामत है -
खुशी और
दिल का सुकून !
अपनी मेहनत से और
अपनों की दुआओं से
फलती है !
ये मिलती नहीं,
कमाई जाती है !
शानदार पोस्ट ... बहुत ही बढ़िया लगा पढ़कर .... Thanks for sharing such a nice article!! :) :)
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद
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