शनिवार, 18 फ़रवरी 2017

कमाई


"पाँच रुपये का गम देना" . . 
स्टेशनरी की दुकान पर  
एक बच्चे ने कहा  . . 
तो हँसी आ गई !

मन में सोचा -
बच्चा है !
तब ही 
पैसे देकर 
ग़म खरीद रहा है !

मासूम है !
दुनिया की 
रवायतों से 
अनजान है,
सो ग़म का 
सही इस्तमाल करना 
जानता है !
ग़म पचाना 
जानता है !
सो पैसे देकर 
ग़म खरीदने की हिमाक़त 
कर रहा है !

बड़ा होता 
तो कहता  . . 
भई खरीदना ही है 
तो खुशी खरीदो !
दिल का सुकून खरीदो !
ग़म तो मुफ़्त में 
मिलता है !
बिन बुलाया 
मेहमान है !
आ जाए तो फिर           
जाने का नाम ना ले !
और खुशी ?
ढूँढ़े से नहीं मिलती !

वही तो !
वो बच्चा है  . . 
उसे भी पता है,
खरीदने से
खुशी नहीं मिलती !
ये बाज़ार में 
बिकने वाली 
चीज़ नहीं !

ये नियामत है -
खुशी और 
दिल का सुकून !
अपनी मेहनत से और  
अपनों की दुआओं से 
फलती है !
ये मिलती नहीं,
कमाई जाती है !  

       

सोमवार, 13 फ़रवरी 2017

दुःख के लिए जगह मत छोड़ो




सुख इतना उपजाओ मन में, 
दुःख के लिए जगह मत छोड़ो।  

मिट्टी में बीज बो कर देखो। 
फिर देखो कितनी खुशी मिलेगी। 
जब मिटटी में अंकुर फूटेगा,
और सींचोगे तो फूल खिलेगा। 

सुख इतना उपजाओ मन में, 
दुःख के लिए जगह मत छोड़ो।  

दोस्त किसी के बन कर देखो। 
फिर देखो कितनी खुशी मिलेगी। 
उसका दुःख सुलझाओगे जितना,
अपने सुख का पता मिलेगा। 

सुख इतना उपजाओ मन में, 
दुःख के लिए जगह मत छोड़ो।  

टूटी चीज़ों को जोड़ के देखो। 
फिर देखो कितनी खुशी मिलेगी। 
जब - जब जोड़ोगे टूटा खिलौना,
बच्चों का निश्छल प्यार मिलेगा। 

सुख इतना उपजाओ मन में, 
दुःख के लिए जगह मत छोड़ो।  

भार उठा अपनों का देखो। 
फिर देखो कितनी खुशी मिलेगी। 
हर दिन माँ - बाप के पैर दबाना,
भारीपन मन का उड़न - छू होगा। 

सुख इतना उपजाओ मन में, 
दुःख के लिए जगह मत छोड़ो।  

बेरंग सतहों को रंग कर देखो। 
फिर देखो कितनी खुशी मिलेगी। 
सूनी दीवारें,कैनवस,कॉपी,हथेली हो, 
तीन कनस्तर या लकड़ी का टुकड़ा। 
कुछ मत छोड़ो ! सब कुछ रंग दो !
जीवन का रंग क्या खूब चढ़ेगा !

सुख इतना उपजाओ मन में, 
दुःख के लिए जगह मत छोड़ो।  




शनिवार, 11 फ़रवरी 2017

कोई सुन रहा है





कई बार 
ऐसा होता है  . . 
जब धूप ढ़ल रही होती है,   
अंतर्मन में कहीं 
सूर्य अस्त होने लगता है ।

बहुत कुछ कहना होता है,
पर शब्द पर्याप्त नहीं होते ।
बहुत कुछ कहना होता है ,
पर कोई सुनने वाला नहीं होता ।

उस वक़्त, 
अगर ध्यान से देखो 
और महसूस करो, 
सर पर तुम्हारे नीला आसमान 
अपना प्यार भरा 
हाथ रख देता है । 

पेड़ हाथ हिला-हिला कर 
अपनी छाँव में बैठने को बुलाते हैं ।
गौरैया का लगा रहता है 
आना-जाना  . . 
क्यों तुम पाते हो अपने को अकेला ?

नन्हे पौधों पर 
हौले-हौले हिलती 
हरी कोमल पत्तियां, 
गुनगुनी धूप में खिले 
किसिम - किसिम के फूल 
मुस्कुराते हैं 
और देते हैं 
मौन आश्वासन  . . 
कोई जान रहा है 
तुम्हारे मन की बात  . . 
कोई सुन रहा है ।