कई बार
ऐसा होता है . .
जब धूप ढ़ल रही होती है,
अंतर्मन में कहीं
सूर्य अस्त होने लगता है ।
बहुत कुछ कहना होता है,
पर शब्द पर्याप्त नहीं होते ।
बहुत कुछ कहना होता है ,
पर कोई सुनने वाला नहीं होता ।
उस वक़्त,
अगर ध्यान से देखो
और महसूस करो,
सर पर तुम्हारे नीला आसमान
अपना प्यार भरा
हाथ रख देता है ।
पेड़ हाथ हिला-हिला कर
अपनी छाँव में बैठने को बुलाते हैं ।
गौरैया का लगा रहता है
आना-जाना . .
क्यों तुम पाते हो अपने को अकेला ?
नन्हे पौधों पर
हौले-हौले हिलती
हरी कोमल पत्तियां,
गुनगुनी धूप में खिले
किसिम - किसिम के फूल
मुस्कुराते हैं
और देते हैं
मौन आश्वासन . .
कोई जान रहा है
तुम्हारे मन की बात . .
कोई सुन रहा है ।
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