रविवार, 28 अप्रैल 2013

इतनी सी बात पर



जिस तरह डाली पर फूल हौले - हौले हिलते हैं .
जिस तरह सूखे पत्ते धीरे - धीरे झरते हैं .
जिस तरह पानी की बूँद पत्ते पर ठहरती है .
बस इतनी - सी बात पर 
शायर नज़्म लिखते हैं .  

जिस तरह बारिश मूसलाधार बरसती है .
जिस तरह पहली बौछार के बाद मिट्टी सौंधी - सौंधी महकती है .
जिस तरह बूंदों की क्यारियाँ - सी धरती पर बनती हैं .
जिस तरह बरखा एक राग धीमे - धीमे गुनगुनाती है .
बस इतनी - सी बात पर 
शायर नज़्म लिखते हैं .

जिस तरह कोई बात चुप रह कर भी बोलती है .
जिस तरह कोई याद मन को निरंतर मथती है .
जिस तरह कोई अहसास ऊनी शॉल - सा लिपट जाता है .
बस इतनी सी बात पर 
शायर नज़्म लिखते हैं .

जिस तरह एक बच्चा मीठा - सा मुस्कुराता है .
अपनी तोतली बोली में दादी की कहानी दोहराता है .
जिस तरह वो एक पल झगड़ता दूसरे पल गले लगाता है .
बस इतनी सी बात पर 
शायर नज़्म लिखते हैं .   







शनिवार, 27 अप्रैल 2013

फूल झरते हैं




मौसम ही है गर्मी का 
आजकल , क्या कहियेगा !
धूप देती है चटका 
तवे जैसा !
गर्म हवा का झोंका 
तबीयत झुलसा गया !
इनसे जूझता - जूझता 
जब सोनमोहर के नीचे से गुज़रा ,
छोटे - छोटे फूल पीले 
पेड़ से झरे , 
मेरे ऊपर गिरे , 
हलके - से छू गए .
कोमल स्पर्श फूलों का 
मानो आश्वस्त कर गया ..
कह गया -
धूप तपाती है ,
गर्म हवा नश्तर चुभाती है ,
पर सुनो , मन छोटा न करो ,
दरख़्त तले दो पल रुक कर देखो ..
इस मौसम में भी 
छाँव का बिछौना 
क्लांत पथिक को बुलाता है .
इस मौसम में ही 
सोनमोहर के फूल झरते हैं . 



शनिवार, 20 अप्रैल 2013

जीवन धुन के स्वर




मैंने देखा ..
चिलचिलाती धूप में 
बांस की बल्लियों पर चढ़ा 
एक मजदूर , 
गा रहा है 
रामचरितमानस की चौपाइयां ,
अपनी धुन में मगन ..
इसी तरह साधता है वो 
अपनी जीवन धुन के स्वर .