रविवार, 28 अप्रैल 2013

इतनी सी बात पर



जिस तरह डाली पर फूल हौले - हौले हिलते हैं .
जिस तरह सूखे पत्ते धीरे - धीरे झरते हैं .
जिस तरह पानी की बूँद पत्ते पर ठहरती है .
बस इतनी - सी बात पर 
शायर नज़्म लिखते हैं .  

जिस तरह बारिश मूसलाधार बरसती है .
जिस तरह पहली बौछार के बाद मिट्टी सौंधी - सौंधी महकती है .
जिस तरह बूंदों की क्यारियाँ - सी धरती पर बनती हैं .
जिस तरह बरखा एक राग धीमे - धीमे गुनगुनाती है .
बस इतनी - सी बात पर 
शायर नज़्म लिखते हैं .

जिस तरह कोई बात चुप रह कर भी बोलती है .
जिस तरह कोई याद मन को निरंतर मथती है .
जिस तरह कोई अहसास ऊनी शॉल - सा लिपट जाता है .
बस इतनी सी बात पर 
शायर नज़्म लिखते हैं .

जिस तरह एक बच्चा मीठा - सा मुस्कुराता है .
अपनी तोतली बोली में दादी की कहानी दोहराता है .
जिस तरह वो एक पल झगड़ता दूसरे पल गले लगाता है .
बस इतनी सी बात पर 
शायर नज़्म लिखते हैं .   







6 टिप्‍पणियां:

  1. आहा। और वाहा। क्या बात है। बस इतनी सी ही तो है, कि शायर (या शायेरा) ने नज़्म लिख मारी है। हौले हौले, धीरे धीरे, सौंधी सौंधी,, इतनी सी, मीठा सा,, शब्दों के ये प्रयोग कितने मनोहर हैं, सहज और सरल, और अब कहीं भी नज़र नहीं आते। शाल सा लिपट जाने वाला अहसास कितना प्यारा है। जिन बातों को हम रोज़ अपने घर में देखते हैं और महसूस भी नहीं करते, वही बातें इन पंक्तियों में आ कर कितनी सुंदर और सुहानी हो गई हैं। नीरस वातावरण में एक मादकता सी बिखर गई है। बस इतनी सी ही बात है। मैं ऐसी ही कवितायें पढ़ता रहा तो एक दिन ख़ुद भी शायर हो जाऊंगा। लिखती रहिये। ख़ुश रहिये॥

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  2. shams sahab ! apki kahi baat tippani nahi hoti. ek baat hoti hai jahan se ek nayi soch shuru hoti hai. bas itni si baat hai jo bahut achhi lagti hai.apki baaten ek samvad sthapit karti hain.ye samvad jari rahe..shukriya.

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  3. मैंने तो पहले ही कहा है कि साहित्य का अधिक ज्ञान नहीं मुझको। उचित आलोचना या टिप्पणी मेरे बस की नहीं। जो पल्ले पड़ता है, कह देता हूँ। अब हर बात से एक नई सोच को जन्म देना तो कवियों का काम ही है। वो करते रहें। न वो सुधरेंगे, न हम॥

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  4. आपकी कविताएँ पढ़ी। अच्छा लिखती हैं आप। रही इस कविता की बात....

    वैसे तो प्रकृति की सुंदरता भी अकवि हृदय को कवि बना दे पर मामूल चीजों को काव्यात्मक बना देना असली शायर की कलाकारी है। मिसाल के लिए गुलज़ार एक रद्दी के अखबार को कितना
    बढ़िया बिंब बना कर पेश कर देते हैं

    सामने आए मेरे, देखा मुझे, बात भी की
    मुस्कुराये भी पुराने किसी रिश्ते के लिये

    कल का अखबार था बस देख लिया रख भी दिया..

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  5. manishji samay nikaal kar padhne ke liye aur protsahan ke iye bahut dhanyawad. apne badi khoobsurat misaal di hai.mazaa aa gaya. shukriya.

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