रविवार, 15 जनवरी 2012

बस इतना ज़रूरी है



ये ज़रूरी नहीं कि जिसे आप चाहें
वो भी आपको उतना ही चाहे.

चाहने के मायने अलहदा हो सकते हैं.
चाहने के कायदे जुदा हो सकते हैं.
चाहने के दायरे समझ से परे हो सकते हैं.
चाहने के अनुपात परिस्थिति-जन्य हो सकते हैं.

क्या कीजियेगा ?
क्या कहियेगा ?
क्या करियेगा ?

कुछ.. नहीं कर सकते.

बस यूँ समझ लीजिए..

इतना ही ज़रूरी है कि जिसे आप चाहते हैं,
उसे यूँ ही चाहते रहिये.

इतना ही ज़रूरी है कि जो जान से भी प्यारा है,
उसे जी-जान से बस प्यार करते रहिये.

प्यार का पौधा जो रोपा है ज़हन में,
शिद्दत से..मुहब्बत से..उसे सींचते रहिये..

बस.. इतना ज़रूरी है.





बुधवार, 30 नवंबर 2011

मिसरी




वजह
नहीं पता.
पर तुमसे
एक रिश्ता,
भूली-बिसरी,
मिसरी सी
याद का,
का़यम है.
तुम्हें
ख़बर है क्या ?





नदी





नदी का पानी
कभी ठहरता नहीं.
पर नदी के किनारे,
इस पार उस पार,
वही पुराने घाट हैं.

कल कल बहता पानी
सदियों से,
घाटों को ही अपनी
सुनाता आया है 

कहानी.
सुन सुन कर कहानियां
घिस गई हैं
घाट की सीढियां.
कई बार भावावेग में
डूब गई हैं सीढियां.

नदी का उमङना,
घटना-बढना,
जीवन के क़म हैं.
जिन्हें साँझ-सवेरे
नैया खेते-खेते
अपने गीतों में रच के
गाते हैं मांझी.



मंगलवार, 29 नवंबर 2011

पूर्वाग़ह





बङे लोगों के
पूर्वाग़ह,
उनसे भी
बङे होते हैं.

छोटे लोगों के ..
कद में नहीं,
हैसियत में ..

..तो
छोटे लोगों के
पूर्वाग़ह..हों भी तो
कोई मायने
नहीं रखते.
उनके आग़ह भी
दुराग़ह प्रतीत
होते हैं.

इन मामूली
लोगों के
बस हौसले
बङे होते हैं.


रविवार, 2 अक्तूबर 2011

मुझे जाना है दोस्त





वाकई
बुरा मत मानना दोस्त.
दोस्त हो तुम.
तुम्हारे साथ वक्त गुज़ारना
गप्पें लङाना
घंटों ..
असल में बङा
मज़ेदार होता है,
जैसे धीरे-धीरे
पान चबाना
और अड्डेबाज़ी का
लुत्फ़ उठाना..
पर मुझे जाना है दोस्त.

मुझे जाना है दोस्त.
अरसा हुआ
बीवी से नहीं पूछा,
कैसे घर चलाती है
बिना कोई शिकायत किए ?
नलके से बूंद बूंद
टपकते पानी जितने
चंद रूपये
पूरे पङते हैं कैसे ?

मुझे जाना है दोस्त.
माँ के पास
कुछ देर बैठना
और पैर दबाना
चाहता हूं
बहुत दिनों से.
जानता हूं
कहेगी कुछ नहीं,
तरसती रहेगी
दो बोल के लिए.
बुढापे में
हाङ नहीं दुखते जितने,
टोचते हैं उतने
दुखङे कहे-अनकहे.

मुझे जाना है दोस्त.
सुना-अनसुना
बहुत किया,
अब बहुत हुआ.
जिन्होंने पैरों पर खङा किया
उन बाबूजी के
घुटनों में
अब दर्द रहता है.
पाल-पोस कर बङा किया
जो हो सका उन्होंने किया..
अब उनका हाथ तंग रहता है.
ज़रूरत के पैसों का
तकाज़ा करना,
उन्हें अटपटा लगता है.
उनके साथ बाज़ार-हाट
कॉलोनी के पार्क तक
साथ-साथ जाऊं तो
समझ में आये
उन्हें क्या चाहिए.

मुझे जाना है दोस्त.
बहुत दिन हुए
बहन के घर गए.
कुछ नहीं बस,
मुझे देख कर
दो बातें कर
उसका चेहरा खिल जाता है.
और मुझे चैन पङ जाता है.

मुझे जाना है दोस्त.
पिछले दिनों मुझे लगा
मेरे भाई के
मन में
है कोई दुविधा.
बात क्या है यदि मैं जान पाता,
तो शायद कोई हल सुझाता
या बातें ही करता,
उसका मन हल्का हो जाता.
कई दिनों से
बस आते-जाते मिले,
सोचता हूं रोज़ शाम को
शतरंज खेली जाये
और वक्त की
चाल समझी जाये,
मुश्किलों को मात दे दी जाये.

मुझे जाना है दोस्त.
बच्चों के गिले-शिकवे,
स्कूल के उनके बस्ते
खोल कर देखने
उनके खेल खेलने का
वक्त ही नहीं मिलता.
आज सोचा है,
उनको चौंका दूंगा,
कहीं घुमा लाऊंगा,
उनके साथ बच्चा बन जाऊंगा.
कहो कैसा रहेगा ?

क्या ये सब मुझसे
हो सकेगा ?
समझ रहे हो ना ?
इसीलिए आज नहीं,
फिर एक दिन कभी
तुम्हारे साथ बैठूंगा.
और कुछ नहीं करूंगा.
यारों के किस्से सुनूंगा,
चबूतरे पर लेटा-लेटा
तारे गिनूंगा,
पुराना कोई गीत गाऊंगा.

पर आज नहीं.
आज मुझे जाना है मेरे दोस्त.

सच.
बुरा मत मानना,
आज मुझे जाना है दोस्त. 





शनिवार, 1 अक्तूबर 2011

तुम्हें नहीं पता




याद है उस दिन
जिस दिन
माँ ने तुम्हें
एक ज़ोर का
चाँटा मारा था
और बहुत
डॉटा था ..
उस दिन
जब तुम
रोते-रोते
सो गए थे,
तुम्हारे गालों पर
आंसू
सूख गए थे..
उस दिन
देर रात तक मॉं
जागती रही थी.
बहुत देर तक
तुम्हारे सिरहाने बैठी
हिलक हिलक कर
रोती रही
और तुम्हारा माथा
सहलाती रही..
उस दिन
बहुत देर तक.

तुम्हें पता नहीं.


रविवार, 18 सितंबर 2011

किताबें और खिलौने




जिस घर में
जगह नहीं,
किताबों
और खिलौनों
के लिए,
वो घर
बहुत छोटा है
रहने के लिए.

उस घर में
एक खिङकी
कम है,
बंजारन हवा की
चहलकदमी
के लिए,
आसमान की
चौङाई का
अंदाज़ा
लगाने के लिए,
बदलते मौसमों का
लेखा-जोखा
रखने के लिए,

उस घर में
जगह कम है,
सपनों की फसल
बोने के लिए,
नदी की तरह
अपने भीतर
बहने के लिए,
और छक कर
जीने के लिए.