रविवार, 25 फ़रवरी 2024

सोच


चलो मिल कर सोचते हैं

फिर एक बार, 

कैसे इस दुनिया को

बनाया जाए बेहतर ।

वो दुनिया नहीं जो हमें

तोहफ़े में मिली है,

ईश्वर ने दी है ।

वो दुनिया जिसे 

हमने मनमानी कर के 

बिगाङा है ख़ुद,

और कोसते रहते हैं 

हालात को दिन-रात ।

जैसे चन्द्रमा 

अंधेरे के पर्दे हटा,

कभी पूरा,

कभी थोङा-थोङा,

अमृत चाँदनी का 

बरसाता है,

जैसे सूरज रोज़ाना 

रोशनी की संजीवनी उपजा

बेनागा अलख जगाता है ..

कर सकते हैं हम भी तो

अपने-अपने कोने को

उजला रखने की चेष्टा ।

मार्जन कर चित्त का

कर्मनिष्ठा का दिया बालना

और अंधकार से लोहा लेना,

ख़ुद को आज़मा कर देखना,

शायद बेहतर बना दे दुनिया,

नज़रिया संवार दे, हमारा सोचना ।



सोमवार, 5 फ़रवरी 2024

रोज़ दस सैंतालीस पर..


रोज़ सुबह 

दस सैंतालीस पर

दरवाज़ा खटखटाता है,

मेरा एक ख़्वाब।

दरवाज़ा ना खोलो,

तो चिल्लाता है वो

इतनी ज़ोर से कि

कान के पर्दे ही नहीं,

आत्मा के तार भी

उठते हैं झनझना !

कहीं फिर से 

सो जाऊं ना..

भूल कर ख़ुद

अपना ही ख़्वाब!


घंटाघर के घंटे जैसे 

उधेङ देते हैं नींद

एक झटके में,

हर दिन सुबह 

दस सैंतालीस पर,

मेरे फ़ोन की घङी में

बज उठता है अलार्म, 

याद दिलाने के लिए 

कि अभी बाकी हैं करने

बहुत ज़रुरी काम ।


एक बार झल्ला कर  

मैंने पूछा भी था, 

कब तक चलेगा  ?

यह टोकना रोज़ाना 

देना उलाहना,  

और झकझोर कर जगाना,

याद दिलाना, 

"समय चूक की हूक"

और मुंह पर 

बोल देना दो टूक 

जो कर दे नेस्तनाबूद !


वक़्त ने पलट कर देखा
 
जैसे मुश्किल हो पहचानना

मेरा चेहरा-मोहरा 

और बातों का जखीरा ..

सुनो , तुम ही हो ना ?

जिसने कहा था 

काम सौंपा था ,

जब स्वयं से मुँह फेरते देखो, 

तुरंत मुझे फटकारना !

खरी-खोटी सुनाना पर 

चुनौती देने से मत चूकना !

मेरे साथ-साथ चलना सदा 

बन कर मेरा साया, 

जो अँधेरे में भी नहीं होता जुदा !

मत खेलने देना जुआ !

दाँव पर मत लगाने देना 

मुझे अपना ख्वाब ..
  


ख़्वाब सच हों इसके लिए 

होना पङता है सजग

कमाना पङता है विश्वास,

और करना पङता है 

अथक प्रयास।

ऐसे ही नहीं बन जाते

स्वप्नों के महल !


तंद्रा झकझोर कर 

बिस्तर छोङ कर पहले

खोदनी पङती है नींव,

पक्की नींव पर ही

खङे होते हैं दरो-दीवार ।

फिर बनते हैं रोशनदान, 

खिङकियाँ हवादार ।

उसके बाद रहने वालों के 

दिलों में बसा प्यार और सरोकार ।

तब जाकर होता है गुलज़ार ..

... ख़्वाबघर ।



गुरुवार, 1 फ़रवरी 2024

राम नाम



तर गए पत्थर

जिन पर लिखा था

राम नाम ।


कर गए पार

पवनसुत सागर

लेकर राम का नाम ।


मिला न्याय तब

जब सुग्रीव 

हुए शरणागत।


हुए मुक्त

दुख से विभीषण 

जप कर राम नाम ।


उतारे पार

केवट ने जब राम

हुआ भवसागर पार।


चरण पादुका पूज 

भरत ने साधे राजकाज

कर राम नाम का ध्यान ।


दुख के टूटे पहाङ

माँ सीता ने धारा धैर्य 

भरोसा एक राम का नाम ।


जगत के सारे व्यवधान

मेटता एक राम का नाम ।

जपना राम नाम अविराम।


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राम नाम अंकन साभार-सुश्री श्रीनिधि सीतारामन
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