ये ज़रूरी नहीं कि जिसे आप चाहें
वो भी आपको उतना ही चाहे.
चाहने के मायने अलहदा हो सकते हैं.
चाहने के कायदे जुदा हो सकते हैं.
चाहने के दायरे समझ से परे हो सकते हैं.
चाहने के अनुपात परिस्थिति-जन्य हो सकते हैं.
क्या कीजियेगा ?
क्या कहियेगा ?
क्या करियेगा ?
कुछ.. नहीं कर सकते.
बस यूँ समझ लीजिए..
इतना ही ज़रूरी है कि जिसे आप चाहते हैं,
उसे यूँ ही चाहते रहिये.
इतना ही ज़रूरी है कि जो जान से भी प्यारा है,
उसे जी-जान से बस प्यार करते रहिये.
प्यार का पौधा जो रोपा है ज़हन में,
शिद्दत से..मुहब्बत से..उसे सींचते रहिये..
बस.. इतना ज़रूरी है.
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