शुक्रवार, 20 नवंबर 2009

जीवन मुझे जी भर कर जीना है

जीवन का रस चखो

खूब काम करो
काम का मज़ा लो
जितना सीख सको,
जिससे सीख सको... सीखो
जीवन का रस चखो

अभी तो

मन की कई बातें,
कहनी और सुननी हैं
सोची-समझी बातें,
गुननी और करनी हैं

प्यार और मन्दिर का प्रसाद
बांटना है
तुलसी की चौपाइयों को
आत्मसात करना है

भाग्य का लिखा
बांचना है
जो लिखा है उसे
वश में करना है

मन को साधना है
अपने लक्ष्य को पाना है

जी भर कर
गाना-गुनगुनाना है
कलेजे की हूक को
कोयल की कूक
बनाना है

जहाँ हिम्मत टूटे ..
पांव फिसले ..

संभल कर - तुरंत
बिना बात
ढोलक की थाप
पर
झूम कर
ठुमका लगाना है

खुशहाली के बीज
बोना है
उम्मीद की कोपलों को
सींचना - सहलाना है

जीवन के कैनवस में
रंग भरना है
अनुभूति के
हर रंग में
रंगना है

इस क्षण को जीना है
हर क्षण में जीवन पिरोना है

शनिवार, 19 सितंबर 2009

प्रतिबिंब

होगा वही
जो
होना होगा .
अक्सर बुरा होगा .
फिर कुछ अच्छा होगा .

जो भी होगा
ज़रूर उसका
कोई
मतलब होगा .

अंधेरा होगा
तो
उम्मीद का
दीया जलेगा .
मेहनत का
सितारा चमकेगा .

उजाला होगा
तो
जीवन का
कोना - कोना
साफ़-साफ़ दिखेगा .

समय जैसा भी होगा ..
हमारी सोच का प्रतिबिंब होगा .

शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

चलो आज


आज चलो इस पेड़ के नीचे
बैठें और चैन की बंसी बजायें .

हरी दूब पर.. गुनगुनी धुप में
दूधिया बादल की छतरी लगाये,
खुली हवा को गले लगायें .

खिलते फूल पंख तितली के
सृष्टि ने कितनी लगन से सजाये .
खिलते - खिलते ... मुरझाने से पहले
रंग - सुगंध के त्यौहार मनाये .

फिर कांटे चुभने के भय से
क्यूँ इस क्षण का आनंद गँवायें ?

हरी घास पर नंगे पाँव
आओ चलो दौड़ लगायें .
बच्चों की टोली के संग - संग
रंग बिरंगी पतंग उड़ायें .