जीवन का रस चखो ।
खूब काम करो ।
काम का मज़ा लो ।
जितना सीख सको,
जिससे सीख सको... सीखो ।
जीवन का रस चखो ।
अभी तो
मन की कई बातें,
कहनी और सुननी हैं ।
सोची-समझी बातें,
गुननी और करनी हैं ।
प्यार और मन्दिर का प्रसाद
बांटना है ।
तुलसी की चौपाइयों को
आत्मसात करना है ।
भाग्य का लिखा
बांचना है ।
जो लिखा है उसे
वश में करना है ।
मन को साधना है ।
अपने लक्ष्य को पाना है ।
जी भर कर
गाना-गुनगुनाना है ।
कलेजे की हूक को
कोयल की कूक
बनाना है ।
जहाँ हिम्मत टूटे ..
पांव फिसले ..
संभल कर - तुरंत
बिना बात
ढोलक की थाप
पर
झूम कर
ठुमका लगाना है ।
खुशहाली के बीज
बोना है ।
उम्मीद की कोपलों को
सींचना - सहलाना है ।
जीवन के कैनवस में
रंग भरना है ।
अनुभूति के
हर रंग में
रंगना है ।
इस क्षण को जीना है ।
हर क्षण में जीवन पिरोना है ।
शुक्रवार, 20 नवंबर 2009
जीवन मुझे जी भर कर जीना है
शनिवार, 19 सितंबर 2009
प्रतिबिंब
होगा वही
जो
होना होगा .
अक्सर बुरा होगा .
फिर कुछ अच्छा होगा .
जो भी होगा
ज़रूर उसका
कोई
मतलब होगा .
अंधेरा होगा
तो
उम्मीद का
दीया जलेगा .
मेहनत का
सितारा चमकेगा .
उजाला होगा
तो
जीवन का
कोना - कोना
साफ़-साफ़ दिखेगा .
समय जैसा भी होगा ..
हमारी सोच का प्रतिबिंब होगा .
जो
होना होगा .
अक्सर बुरा होगा .
फिर कुछ अच्छा होगा .
जो भी होगा
ज़रूर उसका
कोई
मतलब होगा .
अंधेरा होगा
तो
उम्मीद का
दीया जलेगा .
मेहनत का
सितारा चमकेगा .
उजाला होगा
तो
जीवन का
कोना - कोना
साफ़-साफ़ दिखेगा .
समय जैसा भी होगा ..
हमारी सोच का प्रतिबिंब होगा .
शुक्रवार, 18 सितंबर 2009
चलो आज
आज चलो इस पेड़ के नीचे
बैठें और चैन की बंसी बजायें .
हरी दूब पर.. गुनगुनी धुप में
दूधिया बादल की छतरी लगाये,
खुली हवा को गले लगायें .
खिलते फूल पंख तितली के
सृष्टि ने कितनी लगन से सजाये .
खिलते - खिलते ... मुरझाने से पहले
रंग - सुगंध के त्यौहार मनाये .
फिर कांटे चुभने के भय से
क्यूँ इस क्षण का आनंद गँवायें ?
हरी घास पर नंगे पाँव
आओ चलो दौड़ लगायें .
बच्चों की टोली के संग - संग
रंग बिरंगी पतंग उड़ायें .
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