शुक्रवार, 18 सितंबर 2009
चलो आज
आज चलो इस पेड़ के नीचे
बैठें और चैन की बंसी बजायें .
हरी दूब पर.. गुनगुनी धुप में
दूधिया बादल की छतरी लगाये,
खुली हवा को गले लगायें .
खिलते फूल पंख तितली के
सृष्टि ने कितनी लगन से सजाये .
खिलते - खिलते ... मुरझाने से पहले
रंग - सुगंध के त्यौहार मनाये .
फिर कांटे चुभने के भय से
क्यूँ इस क्षण का आनंद गँवायें ?
हरी घास पर नंगे पाँव
आओ चलो दौड़ लगायें .
बच्चों की टोली के संग - संग
रंग बिरंगी पतंग उड़ायें .
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आनन्द आ गया.......
जवाब देंहटाएंसुंदर ब्लॉग !
अभिनव कविता !
अनुपम संदेश !
___________हार्दिक बधाई !
achchha laga is perh ke neeche kuchh der baithna...shubhkamnayeN..
जवाब देंहटाएंहरी घास पर नंगे पाँव
जवाब देंहटाएंआओ चलो दौड़ लगायें .
अच्छी कविता है. भावपूर्ण्