बुधवार, 16 फ़रवरी 2022

किस मिट्टी से बना है मेरा भारत ?




किस मिट्टी से बना है मेरा भारत ?
जो असंख्य आक्रमणों का संहार,  
विदेशी सभ्यता का प्रचंड प्रचार,
प्राकृतिक आपदाओं का प्रहार,  
पचा कर भी भारत ही बना रहा ।

सिरमौर हिमालय ध्यानमग्न, चरणों में अथाह सागर ।
सरसों, गेंहू, धान के खेतों, खनिजों का नौलखा हार ।
गंगा, यमुना, कावेरी, नर्मदा, कृष्णा का निर्मल परिधान,
ब्रह्मपुत्र, महानदी के उत्तरीय का अविरल, प्रचंड प्रवाह ।
दक्षिण,कच्छ,पूर्वांचल,रंगीलो राजस्थान भारत का मान।

पर क्या वसीयत में मिला गौरव मात्र है देश की पहचान ?
क्या केवल कला, स्थापत्य, काव्य से ही होगा देश का सम्मान ?
क्या आर्थिक बल से मिली प्रतिष्ठा ही प्रयोजन एकमात्र ?
या नुक्ताचीनी, विरोध, हङताल, धरना ही है समाधान ?
क्या अवसरवादिता से ही बना रहेगा मेरा भारत महान ?

बोलते नहीं बस करते जाते हैं जो लगन से अपना काम, 
जिनके ह्रदय में एकमेव बस देश की सेवा का अरमान,
जिस मिट्टी में गुंथा है समर्पित शहीदों का स्वाभिमान,  
जिसे सींचता है अपने पसीने से श्रमिक और किसान,
उसी पावन मिट्टी से गढ़ा गया है मेरा प्यारा हिंदुस्तान । 
  
 
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कलात्मक फूल रंगोली साभार : सुश्री रेखा शांडिल्य 

मंगलवार, 15 फ़रवरी 2022

गुस्ताख़ी सूरज की



देखो तो ज़रा ढलते सूरज की गुस्ताख़ी !
आंसू बहते देखे तो ऐसी की बेअदबी !
धरती से आकाश तक करवा दी मुनादी !

ह्रदय में जिसके मायूसी, चेहरे पर उदासी, 
कुम्हलाये मुख पर जो बरबस लायेगा हंसी,
उसे मिलेगी खुशियों की करामाती पिटारी !

कहते ही सांझ ने तान दी चुनरी रंग-बिरंगी,
लाल, गुलाबी, हरी, पीली, बैंजनी, नारंगी !
मद्धम हुई फिर रोशनी नीलम से नभ की ।

एक-एक कर तारे चमके साथ चंद्रमा भी,
टिमटिमाते दियों से जैसे जगमगा उठी ज़मीं,
झिलमिल उजली मुस्कान नयनों में झलकी !

घर-घर हुई रोशनी मिटाती तम की पहरेदारी !
किसी को हंसाने से भी मिलती है तसल्ली बङी,
खोई हंसी मिलती है अपने आसपास ही कहीं ।

मंगलवार, 8 फ़रवरी 2022

गुलाब बन के खिलो


गुलाब की तरह खिलो
भीनी-भीनी खुश्बू बनो
भावुक दिलों में बसो
किसने रोका है ?

खुशकिस्मती पर अपनी
खूब इतराओ !
अपना हुनर आज़माओ !
बेफ़िक्र मुस्कुराओ !
किसने टोका है ?

पर भूलना नहीं,
रंगों और खुश्बू का
है कांटों से,
साथ हमेशा से, 
चोली दामन का ।

गुलाब का इत्र बनो ।
गुलकंद बनो ! गुलफ़ाम बनो।
कद्रदानों के बीच रहो ।
कोमल हो।
काँटों के मध्य उगो ।
महफ़ूज़ रहो ।

पर शिकायत ना करो ।
काँटों से परहेज न करो । 
काँटों के बीचों-बीच 
सर उठा के जियो ।
काँटों को अपना कर जियो ।
खट कर, डट कर, टूट कर !
अड़ कर जियो !

जो होगा सो देखा जायेगा !
जब बीतेगा तब झेला जायेगा !
मुरझाने से पहले तक.. 
गुलाब हो, गुलाब की तरह जियो !
ठाठ से खिलो !
किसने रोका है ? 



बुधवार, 19 जनवरी 2022

जिद्दी है ज़िंदगी



राह बहुत लंबी 
बाकी है अभी.
कोई बात नहीं.

कट जायेगा ये भी.
वक़्त बुरा ही सही.
एक दिन बदलेगा ही.

कभी धूप होगी.
कभी छाँव भी.
कभी घटा बरसेगी.
पवन चुभेगी तीर सी.

कभी बात निकलेगी 
बीते दिनों की.
कभी फ़िक्र होगी 
आने वाले कल की.

कभी होगी दोस्ती 
कुछ देकर जाएगी.
कभी यारी टूटेगी भी 
कुछ सिखा कर जाएगी.

ठोकर भी लगेगी 
पर संभल जाएगी.
जिद्दी है ज़िंदगी 
रास्ते ख़ुद बनाएगी.

रविवार, 16 जनवरी 2022

जीवन का स्पंदन



आज एक बङा-सा लाल गुलाब खिला
सजीले गुलाब की रंगत का क्या कहना 
प्रभात का सूरज पहने नारंगी झबला 
एक-एक पंखुरी का हौले से खिलना

उदय होते बाल सूर्य की स्वर्णिम आभा 
खिलते फूल पर ओस की बूँद का ठहरना 
कच्ची धूप के स्पर्श से इन्द्रधनुष बन जाना 
जीवन के स्पंदन का मधुर राग बन जाना 


शुक्रवार, 31 दिसंबर 2021

समय का अल्पविराम


हो रहा है इस बरस का
अंतिम सूर्यास्त ।
कह रहा है अलविदा 
ढलते हुए आज । 

वक्त रहते कह डालो
जी में अटकी बात ।
समय बीतने से पहले 
सुलझा लो उलझे याम ।

सांझ का पट ढल रहा
सजा रंगों के साज़ ।
क्षितिज सुर साधता
जपता सहस्रनाम ।

यायावर है फिर चल देगा
समय का अल्पविराम ।
कभी तुम्हारे कभी हमारे 
राम संवारें सबके काम ।





मंगलवार, 7 दिसंबर 2021

पन्ना पलटने से पहले


पन्ना पलटने से पहले
एक बार बस
पीछे पलट कर देखना ।
कुछ पल
एकांत में पढ़ना,
लिखा प्रारब्ध का ।

क्या पीछे छूट गया,
क्या छोङ देना चाहिए ।
छोङ देना चाहिए
अफ़सोस और ग्लानि ।
ये आंसुओं से गीली
लकङियां हैं,
इनसे पछतावे का
धुआँ निकलता है बस,
चूल्हा नहीं जलता ।

पर करते-करते अभ्यास
जब-जब जले हाथ,
करना नहीं प्रलाप ।
अनुभव से सीख लेना
और निरंतर करना प्रयास ।
पन्ना पलट देना तत्पश्चात ।

खोल कर एक नया पन्ना
फिर से करना शुरूआत ।