मंगलवार, 8 फ़रवरी 2022

गुलाब बन के खिलो


गुलाब की तरह खिलो
भीनी-भीनी खुश्बू बनो
भावुक दिलों में बसो
किसने रोका है ?

खुशकिस्मती पर अपनी
खूब इतराओ !
अपना हुनर आज़माओ !
बेफ़िक्र मुस्कुराओ !
किसने टोका है ?

पर भूलना नहीं,
रंगों और खुश्बू का
है कांटों से,
साथ हमेशा से, 
चोली दामन का ।

गुलाब का इत्र बनो ।
गुलकंद बनो ! गुलफ़ाम बनो।
कद्रदानों के बीच रहो ।
कोमल हो।
काँटों के मध्य उगो ।
महफ़ूज़ रहो ।

पर शिकायत ना करो ।
काँटों से परहेज न करो । 
काँटों के बीचों-बीच 
सर उठा के जियो ।
काँटों को अपना कर जियो ।
खट कर, डट कर, टूट कर !
अड़ कर जियो !

जो होगा सो देखा जायेगा !
जब बीतेगा तब झेला जायेगा !
मुरझाने से पहले तक.. 
गुलाब हो, गुलाब की तरह जियो !
ठाठ से खिलो !
किसने रोका है ? 



30 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. सादर धन्यवाद. अनुराधा जी.

      हटाएं
    2. प्रेरणादायक, सुंदर रचना

      हटाएं
    3. हौसला बना रहे. यही कोशिश रहती है.
      अनाम पाठक को सादर धन्यवाद. नमस्ते.

      हटाएं
  2. अब गुलाब के साथ काँटे तो होंगे ही । बेहतरीन रचना ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. शुक्रिया, संगीता जी ।
      कांटे तो होंगे ही ।
      स्वीकार करो और महफ़ूज़ रहो ।
      या बिंध जाओ रो रो कर ।
      आपने क्या ऑडियो सुना?

      हटाएं
    2. अभी सुना । आपका अन्दाज़ेबयाँ गज़ब का है ।।मज़ा आया सुनने में ।।

      हटाएं
    3. जान कर ख़ुशी हुई, संगीता जी. कभी किसी ऑडियो साहित्य के प्रोजेक्ट के बारे में पता चले तो बताइयेगा. जुड़ने के लिए लालायित हूँ.

      हटाएं
  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (११ -०२ -२०२२ ) को
    'मन है बहुत उदास'(चर्चा अंक-४३३७)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद, अनीता जी ।
      उदासी दूर होगी चर्चा से ।
      कृपया ऑडियो भी सुनियेगा ।

      हटाएं
    2. अनाम पाठक का सादर धन्यवाद.नमस्ते.

      हटाएं
  4. जहाँ गुलाब की उपलब्द्धि हो वहां काँटों से कौन डरेगा ...
    सुन्दर रचना ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद, नासवा जी.
      फ़्लिप बुक "गर्भ नाल" में आपकी रचनाएं पढ़ी कल ही. अच्छी लगीं.
      इसमें डॉक्टर स्वप्ना शर्मा का लेख छपा है. उन्ही से मिला.
      यूरेका वाली फीलिंग आई आपका नाम देख कर : )

      हटाएं
  5. उत्तर
    1. धन्यवाद, सरिता जी.
      आप शायद पहली बार नमस्ते पर आई हैं. सस्नेह स्वागत है.
      आशा है, आपका अनुभव अच्छा रहा होगा. नमस्ते.

      हटाएं
  6. मधुर गुंजन के मध्य अति सुन्दर शब्द-प्रवाह। सुन्दर सृजन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सराहना सर-आँखों पर. नमस्ते, अमृता जी. स्वागत है. पढ़ती रहिएगा.
      उम्मीद है,आपको अच्छा लगेगा.

      हटाएं
  7. "गुलाब का इत्र बनो ।
    गुलकंद बनो ! गुलफ़ाम बनो।
    कद्रदानों के बीच रहो ।"

    बहुत ही उम्दा !!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. शुक्रिया ! आपका नमस्ते पर स्वागत है, पढने और अपने विचार साझा करने के लिए .

      हटाएं
  8. उत्साह वर्धक और प्रेरणा दायक रचना।
    बेहद ख़ूबसूरत रचना। बधाई।

    नई पोस्ट- CYCLAMEN COUM : ख़ूबसूरती की बला

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद, रोहितास जी.
      जी ये तो गुलाब का कमाल है !
      जिसके सर पर काँटों का ताज है !
      यूँ ही नहीं फूलों का राजा गुलाब है !

      हटाएं
  9. उत्तर
    1. जी, शुक्रिया !
      इस दुनिया में तुक ही तो नहीं मिलती !
      नमस्ते पर आपका स्वागत है.

      हटाएं
  10. कहीं पढ़ा था की भक्ति का पथ गुलाब के फूल समान कोमल होता है, पर उस कोमल पुष्प की रक्षा करने के लिए कांटे रूपी कर्म कांड की आवश्यकता होती है।
    पता नही की ये बात कितनी सच है, पर कविता सुंदर लगी। फूल हैं तो काटें भी होंगे

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अनमोल सा, खम्मा घणी . आपने बड़ी अच्छी बात बताई. सुखद अनुभूति हुई. बातों की कड़ी से कड़ी जुड़ती जाती है. जैसी दृष्टि, वैसा ही दृश्य.
      धन्यवाद. नमस्ते.

      हटाएं

कुछ अपने मन की भी कहिए