चाँद का झूमर सितारों की बाली,
किरणों का हार चुनरिया धानी ।
भाता है मुझको सजना संवरना,
हर दिन खुद को खुशियों से रंगना ।
लेकिन ठहरो ज़रा मेरी बात सुनना,
बस इतना ही तुम मुझको न समझना ।
कभी मेरे भीतर बहती नदी को,
तट पर बैठे-बैठे महसूस करना ।
कल-कल अविरल शांत बहता जल,
लहर-लहर उमङता भावों का स्पंदन ।
कभी सुनना ..समझ सको तो समझना,
हर नदी की विडंबना, यही रही हमेशा
समय के दो पाटों के बीच बहना ।
घाटों की मर्यादा का पालन करना ।
देखो तुम इसे उलाहना मत समझना ।
मुझे तुमसे बस इतना ही था कहना ।
नदी चाहती है केवल बहना ।
स्वीकार है, अंतर में समेटना
विसर्जित हो जो भी आया बहता ।
गहराई में सदा हो रहा मंथन ।
तल में निरंतर हो रहा चिंतन ।
यही तो है इस जग की विषमता ,
नदी के सहज प्रवाह को रोकना
बन जाता है बाढ़ की विभीषिका ।
मेरे बहाव में निश्चिंत नाव खेना ।
पर मेरे भीतर बहती है जो यमुना,
उस नदी का सदा सम्मान करना ।
जब तक जल है पावन, बहने देना ।