भले आदमी थे
जल्दी चले गए ।
जल्दी चले गए ?
अच्छे चले गए !
जो लंबे रह गए ।
वो पछता रहे !
जल्दी जाने वाले,
अचानक जाने वाले,
कम से कम सोचिए..
खुशफ़हमी में तो गए
कि उनके जाने से
सबके दिल बहुत दुखे ।
जी जाते अगर लंबे
तो सारे भ्रम दूर हो जाते ।
चकनाचूर हो जाते
इरादे अपने अनुभव से
सबको राह दिखाने के ।
अपने स्नेह की फुहार से
घर की फुलवारी सींचने के ।
ज़्यादा टिक जाते अगर ये
आउटडेटेड हो जाते,
पुराने एनटीक रेडियो से,
जो एकदम फ़िट नहीं होते
ज़माने के बदलते दौर में ।
स्टीरियो साउंड के रहते
इनकी खङखङ कौन सुने !
न रखने के न कबाङ में
डालने के पुराने सामान ये ।
पुश्तैनी आरामकुर्सी जैसे
एडजस्ट हो ही नहीं पाते ।
जब देखो तब टकरा जाते ।
दिन भर असहाय बङबङाते
घर में अपना कोना तलाशते
उपेक्षित बङे - बूढे कुटुंब के ।
कुछ ग़लत कहा क्या हमने ?
आंख की किरकिरी बनने से
बच गए जो जल्दी चल दिए,
अकस्मात यूँ ही चलते-चलते ।
सुन्दर
ReplyDeleteसदा आभारी । नमस्ते ।
DeleteSahi hai
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०५-०३-२०२१) को 'निसर्ग महा दानी'(चर्चा अंक- ३९९७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी
धन्यवाद, अनीता जी ।
Deleteविषय रोचक है । कल भेंट होगी ।
बहुत सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद,ओंकार जी ।
Deleteसुन्दर सृजन।
ReplyDeleteधन्यवाद, शांतनु जी ।
Deleteश्रवण कुमार कथा-कहानी के पात्र लगते हों भले,अब भी मौजूद हैं । अपनी बारी आने पर ईश्वर हमें सन्मति दें ।
सौ प्रतिशत सच कहा . अचानक चले जाना ही सही है वरना तो सारे रूप सामने आ जाते हैं .
ReplyDeleteशुक्रिया,संगीता जी ।
Deleteजीने जी नहीं पूछा । मरने के बाद उमङो या बरसो, क्या फ़र्क पड़ता है । पंछी तो उङ गया ।
जाने वाले के लिए नहीं,औपचारिकता निभाने आते हैं लोग ।
कुछ ग़लत कहा क्या हमने ?
ReplyDeleteआंख की किरकिरी बनने से
बच गए जो जल्दी चल दिए,
अकस्मात यूँ ही चलते-चलते ।
बिलकुल सत्य कहा आपने,अक्स्सर देखा जाता है किसी का रहना भी बोझ बन जाता है लोगों के लिए।
यथार्थ को दर्शाता सुंदर सृजन,सादर नमन
आभारी हूँ, कामिनी जी । आपने अपने विचार व्यक्त किए । आसपास बहुत देखी यह व्यथा । मन विचलित हो जाता है । जिनके लिए आप अपने-आप को भुला देते हैं, वही आपको भुला देते हैं । औरों का क्या कहना ?
Deleteसमय आने पर ईश्वर हमें भी सन्मति दें ।
बेहतरीन रचना।
ReplyDeleteशुक्रिया, अनुराधा जी ।
Deleteबहुत दिनों में आना हुआ ।
फिर जल्दी आइयेगा नमस्ते पर ।
यथार्थ! सटीक विश्लेषण।
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन नूपुरम जी।
सस्नेह।
हार्दिक आभार आदरणीया ।
Deleteकाश इस विषय पर लिखने की ज़रूरत ही न पङती । पर दुनिया है । बाज़ आ जाए तो दुनिया क्या ?
Kuch bhi kahiye, par jo Vintage ki value samajhte hain wo samajhte hain.
ReplyDeleteवृद्धावस्था का सटीक चित्रण।
ReplyDeleteKavita nahin aaina hai kya khoob sachchayi vyakt ki haii kavya jagat k Utkarsh par pahuncho yehi aashirwad hai.
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा है, बहुत ही बढ़िया ,सच को दर्शाती हुई
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