सोमवार, 8 मार्च 2021

नदी चाहती है केवल बहना


चाँद का झूमर सितारों की बाली, 
किरणों का हार चुनरिया धानी ।
भाता है मुझको सजना संवरना,
हर दिन खुद को खुशियों से रंगना ।

लेकिन ठहरो ज़रा मेरी बात सुनना,
बस इतना ही तुम मुझको न समझना ।

कभी मेरे भीतर बहती नदी को,
तट पर बैठे-बैठे महसूस करना ।
कल-कल अविरल शांत बहता जल, 
लहर-लहर उमङता भावों का स्पंदन ।

कभी सुनना ..समझ सको तो समझना,
हर नदी की विडंबना, यही रही हमेशा 
समय के दो पाटों के बीच बहना ।
घाटों की मर्यादा का पालन करना ।

देखो तुम इसे उलाहना मत समझना ।
मुझे तुमसे बस इतना ही था कहना ।
नदी चाहती है केवल बहना ।

स्वीकार है, अंतर में समेटना 
विसर्जित हो जो भी आया बहता ।
गहराई में सदा हो रहा मंथन ।
तल में निरंतर हो रहा चिंतन ।

यही तो है इस जग की विषमता ,
नदी के सहज प्रवाह को रोकना 
बन जाता है बाढ़ की विभीषिका ।

मेरे बहाव में निश्चिंत नाव खेना  ।
पर मेरे भीतर बहती है जो यमुना,
उस नदी का सदा सम्मान करना ।
जब तक जल है पावन, बहने देना ।


45 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 09 मार्च 2021 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सुप्रभात । आज के आनंद में प्रतिभागी बनाने के लिए सविनय हार्दिक आभार ।

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    1. धन्यवाद, ओंकार जी.

      नदियों में पानी रहे.
      लहरों में रवानी रहे.

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  3. बहुत सुंदर । स्त्री मन भी नदी के समान बहता रहता ।बांध लगा कर उसके बहाव को अवरुद्ध न करो ।
    शुभकामनाएँ ।

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    1. बाँध बांधना, नदी को बाढ़ बनने पर मजबूर करता है.
      " ख़ुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है "
      आपने अपने विचार व्यक्त किए ..आभारी हूँ.

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  4. स्वीकार है, अंतर में समेटना
    विसर्जित हो जो भी आया बहता ।
    गहराई में सदा हो रहा मंथन ।
    तल में निरंतर हो रहा चिंतन ।
    ----
    बहुत सुंदर सारगर्भित रचना।

    सादर।

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    1. आपको अच्छी लगी श्वेता जी, जान कर खुशी हुई । धन्यवाद ।
      स्त्री और नदी में समानता लगी ।
      दोनों अपने भीतर सब समा लेती हैं और निर्मल रह्ती हैं, बशर्ते बहती रहें ।

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  5. नदी की तरह ही स्त्री मन मर्यादा के साथ बहना । जो भी हो सबको समाहित भी कर लेना और उसके साथ निरंतर बहना ।
    सुंदर रचना ।

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    1. धन्यवाद संगीता जी । आपने कह दिया सार । नदी और स्त्री बहनें सी हैं ।

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  6. Kitna achchha likha hai tumne 4 padya man ko chhoo gaya .do Paton k beech me bahna!!!

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    1. बहना और आत्मसात करना ।
      विश्रामरहित लय में बहते रहना ।
      आभार और प्रणाम ।

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  7. सब सहन है लेकिन सम्मान पर आंच आये तो फिर किसी कीमत पर समझौता नहीं

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    1. धन्यवाद, कविता जी ।
      सम्मान के लिए जौहर भी किए गए ।
      अविरल बहते रहे सम्मान के लिए ।

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  8. विचारों का ठहर जाना यानी
    विचारों का मर जाना होता है।
    ये इसी सदी की देन है कि महिलाओं के भी विचार होते हैं। महिलाओं हम बेहद पिछड़े हैं। विचारों की रोक हमें ओर पिछड़ा बना देगी।
    बेहद गहरी रचना
    नई रचना

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    1. धन्यवाद, रोहितास जी. आपने मर्म जान लिया.

      जिन खोजा तिन पाइयां
      गहरे पानी पैठ

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  9. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (10-3-21) को "नई गंगा बहाना चाहता हूँ" (चर्चा अंक- 4,001) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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    1. गंगा यमुना का संगम हुई होगी चर्चा.
      सविनय धन्यवाद.

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    1. जान कर प्रसन्नता हुई. हार्दिक आभार, शास्त्रीजी. नमस्ते.

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  11. Very Nice your all post. i love so many & more thoughts i read your post its very good post and images . thank you for sharing

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  12. कितनी भी कठिनाइयां आएं,नदी अपने मार्ग सुगम बनाती है,और बहती है आपकी रचना प्रेरणादायी और चिंतनीय भी है.. सुन्दर रचना..समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी पधारें..सादर नमन ..

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    1. धन्यवाद, जिज्ञासा जी.
      "ख़ुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है."
      नदी और स्त्री में बहुत समानता देखी.
      आपके ब्लॉग को निश्चित रूप से पढना चाहेंगे.

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  13. कोमल भावनाओ से बंधी हुई बेहतरीन रचना, हार्दिक बधाई हो

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    1. ज्योति जी, हार्दिक आभार.
      आपकी भावनाएं जुड़ने से कोमल गांधार हो गया प्रवाह.
      नमस्ते पर आपका स्वागत है.

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  14. कभी सुनना ..समझ सको तो समझना,
    हर नदी की विडंबना, यही रही हमेशा
    समय के दो पाटों के बीच बहना ।
    घाटों की मर्यादा का पालन करना ।
    वाह!!!
    अद्भुत मानवीय करण...
    नदी सी औरत...बहुत ही सुन्दर।।

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    1. नदी और स्त्री के एक होने की अनुभूति हुई, सुधाजी.
      शब्दों में भाव धारा प्रवाहित हुई.
      आपकी सहृदय सराहना के लिए ह्रदय तल से आभार. नमस्ते.

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  15. बहना नदी का स्वभाव है - प्रवाह ही उसका जीवन है ,सहज,निर्मल प्रवाह!

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  16. बहता पानी नदी कहलाये.
    ठहरा पानी नाला बन जाए.

    सबके अंतर में बहती भाव धारा कभी अवरुद्ध ना हो.
    धन्यवाद,प्रतिभा जी.नमस्ते पर आपका सहर्ष स्वागत है.

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  17. गहराई में सदा हो रहा मंथन ।
    तल में निरंतर हो रहा चिंतन ।

    .....बहुत सुंदर दिल को छूती

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    1. आभार, संजयजी ।
      बहुत कुछ घटता रहता है, स्त्री और नदी के ह्दय तल में । गहरे पानी पैठ ही जाना जा सकता है ।

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  18. कुछ और तो वहीं चाहती,
    चाहती है केवल बहना..
    बिना आह के
    उसके निरन्तर प्रवाह से
    सृष्टी को और निखरने दो ना!!!

    Mam as usual very beautiful.. Thanks.

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    1. शुक्रिया तो हमारा कहना बनता है ।
      प्रकृति और औरत से अनाधिकार चेष्टा प्रलय को साघातिक निमंत्रण है ।
      तुमने खूब समझी ये बात । शुक्रिया ।
      नमस्ते पर हार्दिक स्वागत है । आती रहना ।

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  19. बहुत सुन्दर पंक्ति - हर दिन ख़ुद को खुशियों से रँगना. बहुत बधाई.

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    1. डाॅ साहिबा, शुक्रिया ।
      दुख को समेटते हुए
      खुशियों को संजोना,
      हम सीख ही जाएंगे
      इक दिन नदी से जीना ।

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  20. कभी मेरे भीतर बहती नदी को,
    तट पर बैठे-बैठे महसूस करना ।
    कल-कल अविरल शांत बहता जल,
    लहर-लहर उमङता भावों का स्पंदन ।...बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन
    सादर

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