अपनी एक भाषा,
जिसे हर कोई
समझ नहीं पाता ।
पहले कुछ भी
सुनाई नहीं देता ।
होती है
घबराहट सी ।
क्योंकि रिक्तता
बहुत ज़्यादा
शोर मचाती है ।
बहुत कुछ शोर में
छुपा देती है ।
फिर एक बोझ-सा
उतर जाता है ।
बोझिल तनाव
शिथिल पड़ जाता है ।
उसके बाद बहुत कुछ
सुनाई देता है ।
जो हमेशा से था,
पर ढका हुआ था ।
अपने ही हृदय का
मद्धम स्पंदन ।
कभी सुनने का
आग्रह कहाँ था ..
पत्तों की सरसराहट
लयबद्ध हिलना,
अभिवादन करना ।
धूप की दिनचर्या ।
छत पर चढ़ना और
सीढ़ी से उतरना।
चंचल गिलहरी का
दौड़ना कुतरना ।
पक्षियों का सुरीला
अंतरंग वार्तालाप ।
समय की पदचाप ।
सुकून भरा घर अपना
जिसने हमेशा जीवन का
हर व्यतिक्रम झेला ।
करीने से सजा हुआ ।
एक-एक बिसरी बात
स्मरण कराता हुआ ।
कोने में लाचार पड़ा
सामान कसरत का ।
रंगों का पुराना डिब्बा
अंबार किताबों का ।
बाबूजी का बाजा ।
इन सबका उलाहना
सुनाई ही कब दिया ?
जगत के कोलाहल में
निज स्वर खो गया ।
जब बाहर का शोर थमा
अंतरतम से संवाद हुआ ।
मानो मेले में बिछड़ा हुआ
कोई पुराना मीत मिला ।